भोर की रश्मियों की प्रखरता लिये दीप दीपावली के जलें इस बरस
रक्त-कमलासनी के करों से झरे,आप आशीष का पायें पारस परस
ऋद्धि सिद्धि की अनुकूल हों दृष्टियाँ साथ झंकारती एक वीणा रहे
भावनाओं में अपनत्व उगता रहे, क्यारियाँ ज़िन्दगी की रहें सब सरस
रक्त-कमलासनी के करों से झरे,आप आशीष का पायें पारस परस
ऋद्धि सिद्धि की अनुकूल हों दृष्टियाँ साथ झंकारती एक वीणा रहे
भावनाओं में अपनत्व उगता रहे, क्यारियाँ ज़िन्दगी की रहें सब सरस
जले हैं फिर से इस बरस हजार कामना लिए
नवीन वर्तिकाओं से सजे हुए नए दिए
नए ही स्वप्न आँजती है आँख फिर से इस बरस
जो अंकुरित हो आस वो बरस के अंत तक जिए
रची पुरबि के द्वार पर नवीन आज कल्पना
न अब रहे ह्रदय कहीं पे कोई भी हो अनमना
उगे जो भोर निश्चयों के साथ यात्राओं के
डगर के साथ अंश हों नवीन वार्ताओं के
न व्यस्तता की चादरों से दूर एक पल रहे
औ' आज ही भविष्य हो गया है आन कल कहे
न नीड़ के निमंत्रणों से एक पल कोई छले
औ लक्ष्य पग के साथ अपने पग मिला मिला चले
हैं मंत्रपूर सप्तानीर आंजुरी में भर लिए
जले हैं फिर से इस बरस हजार कामना लिए
जो कामनाएँ हैं मेरी, वही रहें हों आपकी
ये डोरियाँ जुड़ी रहें सदा हमारे साथ की
न मैं में तुम में भेद हो,जो तुम कहो वो मैं कहूं
तुम्हारी भावना प्रत्येक साथ साथ मैं सहूँ
यों तुम से मैं जुडू कि भेद बीच आप का हेट
बढ़ा है भ्रम में डूब कर समस्त फासला कटे
चले थे साथ पंथ जिस पे एक दिन,पुन:: चलें
जो खंड हिम के बीच आ गए सभी के सब गलें
न फिर से कोई रह सके अधर पे मौन को लिए
जले हैं दीप पर्व पर नए ही इस बरस दिए
सुनो जो कह रहीं हैं आज वर्तिकाएँ थरथरा
उठो तो अन्धकार का परस रहे डरा डरा
चलो तो दूरियाँ क्षितिज की इक कदम में बंद हों
चलो तो दूरियाँ क्षितिज की इक कदम में बंद हों
बढ़ो तो हाथ थामने को मंजिलों में द्वन्द हों
हैं प्राप्ति के पलों की उंगलियाँ तुम्हारे हाथ में
अमावसी निशा भले, जले हैं दीप साथ में
लगा रहीं हैं अल्पनायें स्वस्ति कल के भाल पर
लिखा है हल उठे हुए नजर के हर सवाल पर
सितारे आसमान पर जलें तुम्हारे ही लिए
खड़ा हूँ दीप पर्व पर यही मैं कामना लिए।
2 comments:
आप और आपके परिवार को दीपावली की अनेक मंगलकामनाएँ....
-समीर लाल ’समीर’
सबकी मंगल रहे दीवाली..
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