बस इतना है परिचय मेरा

बस इतना है परिचय मेरा
 
भाषाओं से कटा हुआ मैं
हो न सका अभिव्यक्त गणित वह
गये नियम प्रतिपादित सब ढह
अनचाहे ही समीकरण से जिसके प्रतिपल घटा हुआ मैं
जीवन की चौसर पर साँसों के हिस्से कर बँटा हुआ मैं
 
बस इतना है परिचय मेरा
 
इक गंतव्यहीन यायावर
अन्त नहीं जिसका कोई, पथ
नीड़ नहीं ना छाया को वट
ताने क्रुद्ध हुए सूरज की किरणों की इक छतरी सर पर
चला तोड़ मन की सीमायें, खंड खंड सुधि का दर्पण कर
 
बस इतना है परिचय मेरा
 
सका नहीं जो हो परिभाषित
इक वक्तव्य स्वयं में उलझा
अवगुंठन जो कभी न सुलझा
हो पाया जो नहीं किसी भी शब्द कोश द्वारा अनुवादित
आधा लिखा एक वह अक्षर, जो हर बार हुआ सम्पादित
 
बस इतना है परिचय मेरा

3 comments:

Udan Tashtari said...

गज़ब का परिचय है आपका...बहुत बेहतरीन...

प्रवीण पाण्डेय said...

स्वयं का अर्थ खोजने में जीवन व्यर्थ हो जाते हैं।

***Punam*** said...

सका नहीं जो हो परिभाषित
इक वक्तव्य स्वयं में उलझा
अवगुंठन जो कभी न सुलझा
हो पाया जो नहीं किसी भी शब्द कोश द्वारा अनुवादित
आधा लिखा एक वह अक्षर, जो हर बार हुआ सम्पादित

बस इतना है परिचय मेरा

बस इतना परिचय काफी है.....!!
सुन्दर...!!

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