उस पल यादों के कक्षों के

लिखते हुए दिवस के गीतों को जब थकीं रश्मि की कलमें
एक लगी ठोकर से बिखरी दावातों की सारी स्याही
सिंदूरी हो गई प्रतीची ने लिख दिया आख़िरी पन्ना
प्राची पर रजनी के आँचल की आ परछाई लहरे
उस पल यादों के कक्षों के वातायन खुल गए अचानक
और तुम्हारे साथ बिठाये क्षण सरे जीवंत हो गए

अमलतास की गहरी छाया गुलमोहर के अंगारों में
जंगल के तट से लग बहती नदिया के उच्छल धारों में
विल्व-पत्र पर काढ़े स्वस्ति के चिन्हों की हर इक रेखा में
इतिहासों के राजमहल के लम्बे सूने गलियारों में
समय तूलिका ने जितने भी चित्रित किये शब्द के खाके
सुधियों के पन्नों पर अंकित हुए, प्रीत के ग्रन्थ बन गए

झुकी द्रष्टि पर बनी आवरण पलकों कजी कोरों पर ठहरे
मन की गहराई से निकले डूब प्रीत में भाव सुनहरे
लिखते हुए चिबुक पर उंगली के नख से नूतन गाथाएं
सिरहाना बन गई हथेली की रेखाओं में आ उतारे
अनचीन्ही इक अनुभूति के समीकरण वे उलझे उलझे
एक निमिष में अनायास ही जन्मों के अनुबंध हो गए

जहां मोड़ पर ठिठक गए थे पाँव कहारों के ले डोली
जिन दहलीजों पर अंकित थी, शुभ शुभ श्गागुन लिए रंगोली
पायल के गीतों से सज्जित रहती थी इक वह अंगनाई
जहाँ नीम की शाखाओं पर सुबह साँझ चिड़ियाएँ बोलीं
उस विराम के अपने खाने बने हुए स्मृति मंजूषा में
आज अचनाक निकल कोष से वे सरे स्वच्छंद हो गए

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कक्ष सुवासित स्मृति के।

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर गीत..

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