जरा सा गुनगुनाया हूँ

लिखे हैं गीत मैने भावना को शब्द में बोकर
लिखे हैं अस्मिता को हर सिरजते छन्द में खोकर
लिखे हैं कल्पना के पक्षियों के पंख पर मैने
लिखे हैं वेदना की गठरियों को शीश पर ढोकर


मगर जो आज लिखता हूँ नहीं है गीत वह मेरा
तुम्हारी प्रीत को बस शब्द में मैं ढाल लाया हूँ


रंगा जिस प्रीत ने पग में तुम्हारे आलता आकर
कपोलों पर अचानक लाज की रेखायें खींची थी
अँजी थी काजरी रेखायें बन कर, जो नयन में आ
कि जिसने गंध बन कर साँस की अँगनाई सींची थी


उमगती प्रीत की उस इन्द्रधनुषी आभ को अपने
पिरोकर छन्द में दो पल जरा सा गुनगुनाया हूँ


किया जिस प्रीत ने कर के तुम्हारे स्पर्श को,पारस
नयन की क्यारियों में स्वप्न के पौधे उगाये हैं
उंड़ेले हैं बहारों के कलश, मन की गली में आ
सँवर कर ताल में, घुंघरू पगों के झनझनाये हैं


उसी इक प्रीत की उठती तरंगों ने छुआ मुझको
लगा है आज मैं बरसात में उसकी नहाया हूँ


पलक अपनी उठा कर जो कहा तुमने बिना बोले
बताया उंगलियों के पोर ने मुझको जरा छूकर
अधर के थरथराते मौन शब्दों को उठाकर के
लिखा था पांव के नख से कोई सन्देश जो भू पर


उसी सन्देश में मैने डुबोई लेखनी अपनी
निखर कर आ गया जो सामने, वो बीन लाया हूँ

9 comments:

Udan Tashtari said...

रंगा जिस प्रीत ने पग में तुम्हारे आलता आकर
कपोलों पर अचानक लाज की रेखायें खींची थी
अँजी थी काजरी रेखायें बन कर, जो नयन में आ
कि जिसने गंध बन कर साँस की अँगनाई सींची थी


-कुछ शब्द ही नहीं सिवाय...अद्भुत कहने के...गजब- अँजी थी काजरी रेखायें!!

विनोद कुमार पांडेय said...

क्या खूब कहा...हर लाइन बेजोड़....राकेश जी धन्यवाद

पलक अपनी उठा कर जो कहा तुमने बिना बोले
बताया उंगलियों के पोर ने मुझको जरा छूकर
अधर के थरथराते मौन शब्दों को उठाकर के
लिखा था पांव के नख से कोई सन्देश जो भू पर

Shekhar Kumawat said...

BAHUT KHUB

BADHAI AAP KO IS KE LIYE

बाल भवन जबलपुर said...

राकेश जी अनोखी बात है

किया जिस प्रीत ने कर के तुम्हारे स्पर्श को,पारस
नयन की क्यारियों में स्वप्न के पौधे उगाये हैं
उंड़ेले हैं बहारों के कलश, मन की गली में आ
सँवर कर ताल में, घुंघरू पगों के झनझनाये हैं

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

लिखे हैं गीत मैने भावना को शब्द में बोकर
लिखे हैं अस्मिता को हर सिरजते छन्द में खोकर
लिखे हैं कल्पना के पक्षियों के पंख पर मैने
लिखे हैं वेदना की गठरियों को शीश पर ढोकर


मगर जो आज लिखता हूँ नहीं है गीत वह मेरा
तुम्हारी प्रीत को बस शब्द में मैं ढाल लाया हूँ
जरा सा गुनगुनाया हूँ...

बहुत सुन्दर!!

Aap Feedburner add kar le, Google redaer ya direct email se padhne me suvidha hogi.

vandana gupta said...

वाह्………क्या खूब भावों को पिरोया है………………गज़ब का लेखन्।

अमिताभ मीत said...

अद्भुत है कविवर !!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

भावमयी रचना शब्दों को बखूबी पिरोया है ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत गीत...

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