उड़ी हवा में गन्ध, टूटने लगे लगे प्रतिबन्ध, मचलने लगे होंठ पर छन्द बदलते मौसम में
जगी ह्रदय में प्रीत, सपन में आया मन का मीत, सुनाता हुआ नये कुछ गीत बदलते मौसम में
चेहरे पर से हटा एक चादर को जागा कई दिनों से परछाईं के घर में जा था दिन सोया
हुई ओस की मद्दम मद्दम बरखा से भर आंजुरि अपनी बैठ गया उकड़ूँ फिर अपना मुख धोया
पलक मिचमिचा अंगड़ाई में उठा हाथ अपने चटकाया जोड़ जोड़ को खोल मोर्चा जमा हुआ
पीली पगड़ी लाल अंगोछा,लिया पहन फिर रेशम कुरता जो कि दूध की रंगत में था सना हुआ
खुली याद की गांठ, चौथ को सजा दूज का चाँद भावनाओं के उमड़े बाँध, बदलते मौसम में
जगी ह्रदय में प्रीत, सपन में आया मन का मीत, सुनाता हुआ नये कुछ गीत बदलते मौसम में
बिखराई लोटे भर भर के गंध फूल ने गठरी खोली अपनी जो थी कई दिनों से बन्द रही
लगा बजाने द्वारे पर आकर मृदंग वह एक मधुप कलियों ने इतने दिन तक जिसकी राह तकी
शाखाओं पर नन्ह-मुन्ने बोल लगे किलकारी लेने और खेलने लगे खोज कर खेल नये इस मौसम के
लगी नाचने दूब छरहरी छेड़ी हुई हवा की धुन पर अपने सीने पर से हटा बोझ सब बोझिल वे
उपवन के नव फूल, बन गई पथ की बिखरी धूल, गा उठे सरिताओं के कूल बदलते मौसम में
जगी ह्रदय में प्रीत, सपन में आया मन का मीत, सुनाता हुआ नये कुछ गीत बदलते मौसम में
हटा सलेटी कम्बल अपना सजते हुये सांझ ने ने पहनी पीले गोटे वाली लाल एक साड़ी
लहरों पर दोनों में रक्खे दीपों ने झिलमिल झिलमिल कर सोनहली रंगीन नई बूटी काढ़ी
टाँक हजारों तारे अपने आंचल में रजनी ने आकर लहराई निशिगंधा की महकी झालर
नभ की मंदाकिनियों से लाकर बरसाने लगा चन्द्रमा अमिय नीर से भर भर कर अपनी कांवर
बढ़े दिवस के पांव, सज गये दुल्हन से अब गांव सुहानी लगे पेड़ की छाण्व, बदलते मौसम में
जगी ह्रदय में प्रीत, सपन में आया मन का मीत, सुनाता हुआ नये कुछ गीत बदलते मौसम में
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नव वर्ष २०२४
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5 comments:
बदलते मौसम का नया गीत लुभावना है ...!!
बहुत ही लम्बी बहर पर कविता कहना एक बहुत मुश्किल काम है । औश्र कितनी सुंदर है ये कविता । यति के प्रयोग बहुत दिनों बाद किसी कविता में देखने को मिले । इसे गाने का प्रयास कर रहा हूं । यदि ठी क से गा पाया तो आपको रिकार्डिंग भेजूंगा
वैसे तो यह कविता पढ़ने की बजाये आपसे पॉडकास्ट मांगती है..अद्भुत रचना.
अब मास्साब गा दें तो सुन कर आनन्द लें.
nice
सुन्दर और मधुर गीत!
इसे चर्चा मंच में भी लिया गया है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_12.html
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