धूप की डोरियों से बन्धे थे प्रहर
थीं घड़ी की सुई डगमगाती रहीं
बन बिखरती रही आज की झोंपड़ी
आस तिनके पे तिनका सजाती रही
कल जो आया ढला आज में, खो गया
फिर प्रतीक्षा संवरने लगी इक नई
दांये से बांये को, बांये से दांये को
मथ रही ज़िन्दगी, इक समय की रई
जो बिखर कर गिरा भोर के साथ में
साँझ आकर उसे बीनती नित रही
बाँध बन कर पलक ने रखी रोक कर
रात जैसे घिरी एक नदिया बही
शब्द छू न सके कंठ की रागिनी
सिसकियाँ होंठ पर कसमसाती रहीं
श्ब्द थे गूंजते रह गये कान में
हो अजर हो अमर एक अहिवात के
चाँदनी की धुली हर किरन पी गये
आ अंधेरे घिरे मावसी रात के
थे हथेली लगा ओक प्यासे अधर
पिघले आकर नहीं मेघ आषाढ़ के
छांह के बरगदों की कहानी मिटी
ठूंठ बाकी रहे बस खड़े ताड़ के
ज़िन्दगी आंख में स्वप्न फिर आंज कर
कल के स्वागत में दीपक जलाती रही
जब भी उठने लगे पांव संकल्प के
एक अवरोध था सामने आ गया
दॄष्टि तत्पर हुई दस्तकें दे क्षितिज
एक कहरा उमड़ कर घना छा गया
बांह आश्वासनों की पकड़ते हुए
थक गईं उंगलियां मुट्ठियां खुल गैंई
मन के ईजिल पे टांगे हुए चित्र में
जितनी रंगीन थीं, बदलियां धुल गईं
सब निमंत्रण बहारों के गुम हो गये
पतझरी थी हवा सनसनाती रही
और फिर अधखुले होंठ से वाणियाँ
मौन हो गीत इक गुनगुनाती रहीं
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13 comments:
जवाब नहीं राकेश भाई इस गीत का. बेहतरीन, बेहतरीन !!
धूप की डोरियों से बन्धे थे प्रहर
थीं घड़ी की सुई डगमगाती रहीं
बन बिखरती रही आज की झोंपड़ी
आस तिनके पे तिनका सजाती रही
-सुपर अद्भुत!!
नत मस्तक!
सुन्दर अद्भुत गीत के लिये बधाई
क्या कहूँ..आपकी रचनाएँ पढता हूँ मौन हो जाता हूँ...आपकी रचना पर टिपण्णी की ही नहीं जा सकती उसे सिर्फ पढ़ा जा सकता है...बस...नमन है आपकी लेखनी को...
नीरज
बेहतरीन गीत, जादुई अहसास सा जगा रहा.
(कल मिलते हैं, होली स्पेशल पोस्ट में.)
प्रणाम!
राकेश जी, आपकी लेखनी को प्रणाम .एकौर अत्यंत भावपूर्ण गीत .विशेषकर ये पंक्तियां:
बांह आश्वासनों की पकड़ते हुए
थक गईं उंगलियां मुट्ठियां खुल गैंई
बधाई.
आशा है अगले माह वाशिंग्टन आने पर आपके गीत सुनने का सौभाग्य मिलेगा.
लाजवाब प्रस्तुति!!
****आपको सपरिवार रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाये****
क्षमा करें राकेश कुछ दिनों से नेट पर आ नही पाया जिस वजह से देर हो गई आपके इस भाव पूर्ण खजाना प्राप्त करने में फिर से बेहतरीन ..सुंदर भावों के प्रवाह के साथ एकसुंदर कविता की प्रस्तुति...हम आपके बहुत आभारी निरंतर इसी बढ़िया काव्यात्मक प्रस्तुति के लिए..
Bas mugdh bhaav se padha aur man moun ho kar rah gaya...kya kahun...adbhud...adbhud...
राकेश जी, संवाद सम्मान के सम्बंध में आपसे आवश्यक बात करती है, कृपया मेरे मेल आई डी zakirlko@gmail.com पर सम्पर्क करने का कष्ट करें।
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