ज़िन्दगी ने एक दिन जो झूम कर था गुनगुनाया
आज भी मैं प्रीत का वह गीत बस दुहरा रहा हूँ
जब ह्रदय में आप ही उपजे निमंत्रण मंज़िलों के
थी डगर ने माँग अपनी पूर ली थी गंध लेकर
दीप आकर जल गये थे रात की अंगनाईयों में
फूल नभ में खिल गये थी रंग की सौगंध लेकर
चित्र जो इक खिंच गया था आप ही आकर नयन में
मैं उसी में रात दिन बस रंग भरता जा रहा हूँ
जब मरुस्थल सज गया था महकती फुलवारियों में
टांक दीं लाकर हवा ने झाड़ियों में सुगबुगाहट
केतकी जब खिल गई थी इक खुले दालान में आ
कोंपलों में भर गई जब इक अनूठी सरसराहट
उस घड़ी जो इक लहर ने कह दिया था तीर पर आ
मैं वही किस्सा तुम्हें आकर सुनाता जा रहा हूँ
जब सुकोमल रूप आकर ॠषि नयन में बस गया था
मुद्रिका खोई हुइ जिस पल अचानक मिल गई थी
शास्त्र सारे बह गये थे मंत्रमुग्धित हो जहां पर
सृष्टि जब भगवत कथा के पाठ से आ मिल गई थी
शंख सीपी लिख गये जो सिन्धु के तट पर कहानी
ढाल कर मैं कंठ में उसको सुनाता जा रहा हूँ
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11 comments:
शंख सीपी लिख गये जो सिन्धु के तट पर कहानी
ढाल कर मैं कंठ में उसको सुनाता जा रहा हूँ
अतिसुन्दर भाई लिखते रहे ........बहुत बढिया
"जब मरुस्थल सज गया था महकती फुलवारियों में
टांक दीं लाकर हवा ने झाड़ियों में सुगबुगाहट
केतकी जब खिल गई थी इक खुले दालान में आ
कोंपलों में भर गई जब इक अनूठी सरसराहट
उस घड़ी जो इक लहर ने कह दिया था तीर पर आ
मैं वही किस्सा तुम्हें आकर सुनाता जा रहा हूँ"
आपकी यह पंक्तियाँ काव्यशास्त्रीय विवेचन की माँग कर रही हैं । प्रत्येक शब्द अपने सम्पूर्ण प्रभाव के साथ उपस्थित है । मैं सम्मोहित हूँ । धन्यवाद ।
सच्चा शरणम्: यह हँसी कितनी पुरानी है ?
बहुत समय बाद बहुत उच्च और शुद्ध हिन्ह्ी की उत्कृष्ठ रचना पड़ने मिली !
बहुत ही बेहतरीन रचना है।बहुत अच्छी लगी।आभार।
सुंदर! पढ़ते-पढ़ते कब गुनगुनाने लगा पता ही नहीं चला।
शब्द जिसकी लेखनी के ही इशारों पर निकलते।
क्या करूँ तारीफ बस तारीफ दुहराता जा रहा हूँ।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
:)
आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी नमस्कार,
आपके बारे में बहोत सूना था मैं कहीं और से नहीं बल्कि अपने गुरु देव से ही और आज भालीभाती आपसे मिल लिया और आपके कविता का रस्सावादन कर रहा हूँ .. शुद्ध हिंदी का प्रयोग ,सरल भावः गंभीरता लिए और कितनी बारीक नज़र है आपकी , साधारण सी चीज को भी असाधारण बना देती है आपकी लेखनी ... यह गीत वाकई गुनगुनाने वाली है और मैं भी अपने आपको रोक न पया इसकेलिए ... मैं आपके लेखनी के बारे में भला क्या कह सकता हूँ मैं अदना .... आप सभी से ही सिखाने का अवसर प्राप्त करता रहता हूँ.. और आपके लिखे से ही सीखता रहता हूँ ... बस दिल इस नायाब गीत के लिए वाह वाह कह रहा है... आप सभी का आर्शीवाद बना रहे यही दुआ है ...
अर्श
चित्र जो इक खिंच गया था आप ही आकर नयन में
मैं उसी में रात दिन बस रंग भरता जा रहा हूँ
aapki rachana ka zavab nahin.
वाह... बेहतरीन गीति रचना भाई जी.. बधाई स्वीकारें..
आनन्द आ गया इसे गुनगुना कर..आवाज जैसी भी हो, गुनगुना तो सकते ही हैं वो भी जब गीत इतना बेहतरीन हो!!
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