पढ़ा नहीं है पत्र तुम्हारा

खुला नहीं है बन्द लिफ़ाफ़ा अभी हवा का वन से आकर
इसीलिये ही पत्र तुम्हारा पढ़ा नहीं कोयल ने गाकर

ये तो है अनुमान मुझे क्या तुमने लिखा पत्र में होगा
एकाकीपन घेरे रहता है यादों के दीप जलाये
और एक आवारा बदली ठहरी हुई नयन के नभ पर
नीर भरी कलसी ढुलकाती है जब भी उसका मन आये

और लिखा होगा असमंजस जो उतरा है मन में आकर
इसीलिये ही पत्र तुम्हारा पढ़ा नहीं कोयल ने गाकर

आग लगाता मन में,होगा लिखा,यहां जब बरसे सावन
और उमड़ती गंधें चुभती कांटा बन बन कर सीने में
क्रूर पपीहा जाने क्योंकर मुझको अपना राग सुनाये
और शिला जैसी है बोझिल सांस सांस लगता जीने में

शायद ये भी लिखा पीर ही रखती है मुझको बहलाकर
इसीलिये ही पत्र तुम्हारा पढ़ा नहीं बुलबुल ने गाकर

चन्दन की ले कलम शहद में डुबो लिखे होगे जब अक्षर
और शब्द में उभरा होगा नाम स्वत: ही मेरा आकर
चूमी होगी उस पल तुमने सौ सौ बार हथेली अपनी
और पत्र फिर खोला होगा बन्द हुआ फिर से अकुलाकर

भेजा शायद एक फूल भी तुमने उस के साथ लगाकर
अब तक लेकिन पत्र तुम्हारा पढ़ा नहीं मौसम ने गा कर

7 comments:

Udan Tashtari said...

चन्दन की ले कलम शहद में डुबो लिखे होगे जब अक्षर
और शब्द में उभरा होगा नाम स्वत: ही मेरा आकर
चूमी होगी उस पल तुमने सौ सौ बार हथेली अपनी
और पत्र फिर खोला होगा बन्द हुआ फिर से अकुलाकर

भेजा शायद एक फूल भी तुमने उस के साथ लगाकर
अब तक लेकिन पत्र तुम्हारा पढ़ा नहीं मौसम ने गा कर


--गज़ब!! गज़ब!! बस---इतना ही कहता हूँ-उम्दा रचना!! कम लिखा पूरा समझियेगा.

श्यामल सुमन said...

चन्दन की ले कलम शहद में डुबो लिखे होगे जब अक्षर
और शब्द में उभरा होगा नाम स्वत: ही मेरा आकर
चूमी होगी उस पल तुमने सौ सौ बार हथेली अपनी
और पत्र फिर खोला होगा बन्द हुआ फिर से अकुलाकर

वाह राकेश भाई। बहुत कुछ कह गए आप। फिर अपनी आदत पे आता हूँ-

है आदत प्राचीन आपकी भरते हैं गागर में सागर।
निकला वाह सुमन के मन से देखा जो गीतों को गाकर।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

अजय कुमार झा said...

kaun nahin itraayegaa ,
uff patra tumhaaraa paakar...
gaa saktaa to .......
main hee padh deta gaakar...

bahut khoob rakesh jee...sundar rachna...............

Shar said...

यादों के दीप जलाये, एक आवारा बदली ठहरी हुई नयन, असमंजस है मन में, आग लगाता मन में सावन, उमड़ती गंधें चुभती , क्रूर पपीहा राग सुनाये, बोझिल सांस सांस, पीर रखती बहलाकर!!

चूमी होगी उस पल तुमने सौ सौ बार हथेली अपनी
और पत्र फिर खोला होगा बन्द हुआ फिर से अकुलाकर !!

अनिल कान्त said...

achchhi aur pyari rachna hai

Shardula said...

"एकाकीपन घेरे रहता है यादों के दीप जलाये
और एक आवारा बदली ठहरी हुई नयन के नभ पर
नीर भरी कलसी ढुलकाती है जब भी उसका मन आये"
वाह! नीर भरी बदली का ये एक प्यारा सा चित्रण !

एक बात बताईये असमंजस क्यों लिखा होगा ? असमंजस होता तो लिखा ही ना होता :)
और आपको किसने कहा की बुलबुल पीर नहीं गाती है :)

"चन्दन की ले कलम शहद में डुबो लिखे होगे जब अक्षर
और शब्द में उभरा होगा नाम स्वत: ही मेरा आकर
चूमी होगी उस पल तुमने सौ सौ बार हथेली अपनी
और पत्र फिर खोला होगा बन्द हुआ फिर से अकुलाकर

भेजा शायद एक फूल भी तुमने उस के साथ लगाकर
अब तक लेकिन पत्र तुम्हारा पढ़ा नहीं मौसम ने गा कर"
... इन पंक्तियों को बस नमन !! कोई सवाल नहीं, कोई जवाब नहीं !!

Anonymous said...

बहुत सुन्दर रचना --- बस और कुछ शेष नही

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