कल जब सजे गीत की महफ़िल, पता नहीं हम हौं या न हौं
यही सोच कर आज यहां पर रचना एक सुना जाते हैं
जितना तय हो गया सफ़र यह गीतों का अद्भुत ही तो है
प्रतिध्वनियाँ हमने तलाश कर कितनी चुनी क्षितिज के पीछे
कितने आयामों में लेने दिया कल्पना को परवाजें
कितने सपने खुली आंख से देखे, कितने आँखें मीचे
पता नहीं निस्सीम गिनतियां कब अंकों में सिमट कैद हों
यही सोच कर आज यहाँ यह गिनती एक गिना जाते हैं
जीवन की पुस्तक के पन्ने जितने पढ़े, सभी थे कोरे
दीप वर्तिका के बिन जैसे, हर अध्याय अधूरी ही था
चले पंथ में दिशाहीन हो लक्ष्य हीन हो रहे भटकते
भक्ति गीत का अर्थ बताने न मीरा न सूरा ही था
क्या मालूम कहीं कल होकर मौन न इकतारा रह जाये
यही सोच कर आज यहाँ पर धुन बस एक बजा जाते हैं
पुष्प गंध में शह्द घोलकर, रँगे प्रीत के गीत अकल्पित
आँसू बनकर बही वेदना को चुनकर शिल्पों में ढाला
बहती हुई हवा की टहनी पर आशा की जड़ी उमंगें
और भरा मावस की सूनी रातों में रंगीन उजाला
कल जब टँगे फ़्रेम ईजिल पर, रंग पास में हौं या न हौं
यही सोच कर आज चित्र में सारे रंग भरे जाते हैं
सिन्दूरी संध्या, अरुणाई भोर और कजरारी रातें
अमराई, पनघट चौपालें, पगडंडी, सारंगी के स्वर
मौसम, रिश्ते, पूजा, वन्दन, मांझी गीत, शीश का टीका
घिर आते घनश्याम, और इठला बतियाता कोई निर्झर
निश्चित नहीं दिखाये कल भी दर्पण चित्र आंख को ये सब
यही सोचकर ढाल शब्द में आज चित्र दिखला जाते हैं
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12 comments:
:)
"सिन्दूरी संध्या, अरुणाई भोर और कजरारी रातें
अमराई, पनघट चौपालें, पगडंडी, सारंगी के स्वर
मौसम, रिश्ते, पूजा, वन्दन, मांझी गीत, शीश का टीका
घिर आते घनश्याम, और इठला बतियाता कोई निर्झर"
Adbhut!!
चले पंथ में दिशाहीन हो लक्ष्य हीन हो रहे भटकते
भक्ति गीत का अर्थ बताने न मीरा न सूरा ही था
अद्भुत राकेश जी अद्भुत...एक एक शब्द तराशा हुआ है रचना में...बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया क्यूँ की विगत एक महीने से जयपुर अवकाश पर रहा लेकिन आप की पुस्तक सदा साथ रही...
नव वर्ष की देर से सही...शुभकामनाएं.
नीरज
"भक्ति गीत का अर्थ बताने न मीरा न सूरा ही था"
"बहती हुई हवा की टहनी पर आशा की जड़ी उमंगें"
"निश्चित नहीं दिखाये कल भी दर्पण चित्र आंख को ये सब"
अति सुंदर पंक्तियां !
क्या बात है...अति सुन्दर. हमेशा की तरह भाई जी.
क्या मालूम कहीं कल होकर मौन न इकतारा रह जाये
यही सोच कर आज यहाँ पर धुन बस एक बजा जाते हैं
bahyt hi madhur aur sangeetmay geet, kaafi dino baad hindi me aise rachna paRee.
अभी रात घिरने को आई है...
तब, एक बार और पढ़ा और कहा उठा: अद्भुत रचना!! वाह!
आपको पढ़ना हमेशा ही आनन्दकारी होता है. मैं इस लायक नहीं कि आपकी तारीफ में कुछ कहूँ. यदि आप मौन के स्वर सुन पाते हों तो दाद सुनाई देगी.
आप तो सदैव रहेंगे कविवर,जब तक गीत रहेगी...
बस सुंदर कह कर रह जाता हूं...कुछ और कहना बेमानी है
"पहले तो मन आया लिख दें
वो महफ़िल क्या महफ़िल होगी
जहाँ स्वधा की अगवानी में
आवाज़ ना तेरी शामिल होगी ।
फिर सोचा, ये सत्य कटु है
ऐसा ही हर युग में होगा
उठ जायेंगे नये प्रणेता
सूर्य कोई अस्त यदि होगा ।
ढूँढेगा ज्यों 'सूर' को ये मन
जब भी कन्हा को ध्यायेगा
तेरा 'गीत कलश' छलकेगा
जब भी गीत कोई गायेगा !"
सादर शार्दुला :)
Geet kalash bahut sthir hai aajkal, chalak nahin raha hai Gurudev :)
Naye geet ki prateeksha mein hein hum ...
Saadar Naman !
:)
वाह ! दिल को छू जाने वाला यह गीत ! अद्वितीय भाव ! शुभकामनायें भाई जी !
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