मेरे जिन गीतों को तुमने एक बार गुनगुना दिया है
उन गीतों की धुन, कान्हा की बांसुरिया की तान हो गई
शब्द शिल्प में ढल कर प्रतिमा, यों ही नहीं बना करते हैं
रागों के आरोहों पर स्वर यों ही नहीं चढ़ा करते हैं
यों ही नहीं घटा की संगत गगन श्याम रंग में रँग देती
विहग भाव के बिना पंख के यों ही नहीं उड़ा करते हैं
तुमने जिसको अपने कोमल स्वर का मधुमय स्पर्श दिया है
वही भावना, उगी भोर की अँगड़ाई का गान हो गई
बिना परस पाये पारस का लौह स्वर्ण में कब ढलता है
और अग्नि का स्पर्श न पाये, स्वर्ण कहां कुन्दन बनता है
और नहीं उंगलियां कला की दें अपने चुम्बन का जादू
तो फिर कुन्दन कहां किसी आभूषण में ढल कर सजता है
आज तुम्हारे अधरों के गुलाब ने जिसे छू लिया आकर
एक पंक्ति में लिखी बात भी गज़लों का उन्वान हो गई
बिना सुरों के लिखे हुए सब गीत अधूरे रह जाते हैं
नयन-सेज के आमंत्रण बिन, सारे सपने ढह जाते हैं
सुरभि न कर दे यदि हस्ताक्षर, तो पुष्पों का रूप अधूरा
पत्र बिना अवलबन के शाखों से गिर कर बह जाते हैं+
मिला तुम्हारे कंठ सरगमी का जो साथ आज उसको तो
श्वेत शब्द की चूनरिया, इक सतरंगा परिधान हो गई
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6 comments:
वाह! राकेश जी,बहुत बढिया रचना है।बहुत खूब लिखा है-
बिना सुरों के लिखे हुए सब गीत अधूरे रह जाते हैं
नयन-सेज के आमंत्रण बिन, सारे सपने ढह जाते हैं
सुरभि न कर दे यदि हस्ताक्षर, तो पुष्पों का रूप अधूरा
पत्र बिना अवलबन के शाखों से गिर कर बह जाते हैं+
वाह राकेश जी आप तो हमेशा की तरह सेंचुरी मार गए काश हामरी क्रिकेट टीम आपसे ही कुछ सीख ले
मेरे जिन गीतों को तुमने एक बार गुनगुना दिया है
उन गीतों की धुन, कान्हा की बांसुरिया की तान हो गई
इस से अधिक सुंदर बात और रोमांटिक बात आपके सिवा कोई नही लिख सकता .अब कौन इसको गुनगुनाये बिना रह पायेगा
दिल को तारों को एक सुंदर झंकार दे गई यह रचना ..
बिना परस पाये पारस का लौह स्वर्ण में कब ढलता है
और अग्नि का स्पर्श न पाये, स्वर्ण कहां कुन्दन बनता है
और नहीं उंगलियां कला की दें अपने चुम्बन का जादू
तो फिर कुन्दन कहां किसी आभूषण में ढल कर सजता है
kanchan naam hone se in panktiyo.n ki taraf jhukav to swabhavik hi hai na
आज तुम्हारे अधरों के गुलाब ने जिसे छू लिया आकर
एक पंक्ति में लिखी बात भी गज़लों का उन्वान हो गई
इन पंक्तियों को पढने के बाद कोई क्या करे...सियाव एक लंबी साँस लेकर आँखें बंद करने के....अद्भुत रचना.
नीरज
आज तुम्हारे अधरों के गुलाब ने जिसे छू लिया आकर
एक पंक्ति में लिखी बात भी गज़लों का उन्वान हो गई
--वाह! अद्भुत रचना.बहुत सुन्दर.आनन्द आ गया.बहुत बधाई.
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