याद आई तो ऐसा लगा कांच पर इन्द्रधनुषी किरण छटपटाने लगी
जो अबीरों से लबरेज थीं प्यालियां, वे सभी की सभी छलछलाने लगीं
तान आने लगी बाँसुरी की मधुर,दूर से डोरियों में हवा की उलझ
चित्र आँखों में पल पल बदलने लगे, कल्पना और कुछ कसमसाने लगी
ये घटा जो घिरी, आपके कुन्तलों की मुझे याद फिर आज आने लगी
दामिनी खिलखिलाई गगन में कहीं, एक छवि आपकी मुस्कुराने लगी
यूँ तो यादों का मौसम रहा है सदा, आज की बात कुछ और ही है प्रिये
एक बदरी पिरोये हुए बून्द में, आपके गीत को गुनगुनाने लगी
फिर दहकने पलाशों के साये लगे, गुलमोहर याद के लहलहाने लगे
जो अमलतास की छांह से थे बँधे, सारे अनुबन्ध फिर याद आने लगे
वक्त की करवटों में छुपे थे रहे, आज जीवन्त पल वे सभी फिर हुए
इक नये राग में गा उठे प्रीत-घन,साज मन के सभी झनझनाने लगे
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6 comments:
याद आई तो ऐसा लगा कांच पर इन्द्रधनुषी किरण छटपटाने लगी
जो अबीरों से लबरेज थीं प्यालियां, वे सभी की सभी छलछलाने लगीं
तान आने लगी बाँसुरी की मधुर,दूर से डोरियों में हवा की उलझ
चित्र आँखों में पल पल बदलने लगे, कल्पना और कुछ कसमसाने लगी
--आहा!! वाह! बहुत खूब. जबरदस्त! जारी रहिये गीत सरिता की प्रवाहमयी यात्रा लिए.
यूँ तो यादों का मौसम रहा है सदा, आज की बात कुछ और ही है प्रिये
एक बदरी पिरोये हुए बून्द में, आपके गीत को गुनगुनाने लगी
राकेश जी बहुत ही मधुर गीत, सुंदर, बहुत सुंदर...
सजीव सारथी
www.podcast.hindyugm.com
"एक बदरी पिरोये हुए बून्द में, आपके गीत को गुनगुनाने लगी"
अहा हा...क्या बात है राकेश जी..भाई वाह..वा...वाह...वा...वाह..वा...वाह...वा...वाह...वा...वाह...वा...(अंतहीन सिलसिला)
नीरज
फिर दहकने पलाशों के साये लगे, गुलमोहर याद के लहलहाने लगे
जो अमलतास की छांह से थे बँधे, सारे अनुबन्ध फिर याद आने लगे
बहुत ही अच्छी रचना है!!!!!!! शुभकामनाएँ
wah wah wah kya baat hai rakesh ji
bahut kamaal
aapki book aane par aapko haridk badhayi rakesh ji
isi tarah aap sabke dilon ko chhute rahe yahi parthna hai
...दूर से डोरियों में हवा की उलझ ...
अदभुत कल्पना गुरुजी !
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