गीतों का रिश्ता छंदों से
फूलों का रिश्ता गंधों से
जो रिश्ता नयनों का होता है सपनों के गांव से
पीड़ा ने ऐसा ही रिश्ता जोड़ा मेरे नाम से
दिन बबूल से आकर मन की अलगनियों पर टँगे जाते हैं
रातें अमरबेल सी मुझको भुजपाशों में भर लेती हैं
दोपहरी की धूप रबर सी खिंच कर भरी रोष में रहती
संध्या आती है धुन्धों का परदा मुँह पर कर देती है
सांकल का रिश्ता कड़ियों से
प्रहरों का रिश्ता घड़ियों से
जो रिश्ता है सुखनवरी का उठते हुए कलाम से
पीड़ा ने ऐसा ही रिश्ता जोड़ा मेरे नाम से
पिघला हुआ ह्रदय रह रह कर उमड़ा करता है आँखों से
शाखों से पल छिन की टपकें पल पल पर बदरंग कुहासे
टिक टिक करते हुए समय के नेजे से प्रहार सीने पर
भग्न आस के अवशेषों के बाकी केवल चित्र धुंआसे
शब्दों से नाता अक्षर का
दहलीजों से नाता घर का
संझवाती के दीपक का ज्यों नाता होता शाम से
पीड़ा ने ऐसा ही नाता जोड़ा मेरे नाम से
अंधियारे की चादर हटती नहीं, भोर हो या दोपहरी
संकट वाली बदली मन के नभ से दूर नहीं जाती है
जितनी बार बीज बोये हैं धीरज के मन की क्यारी में
उतनी बार सुबकियों वाली चिड़िया उनको चुग जाती है
जो नयनों का है काजल से
मंदिर का है गंगाजल से
मरुथल का जो रिश्ता रहता है झुलसाती घाम से
पीड़ा ने जोड़ा ऐसा ही रिश्ता मेरे नाम से
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5 comments:
वाह!! पुनः एक बेहतरीन गीत...बिम्ब संयोजन जबरदस्त है:
शब्दों से नाता अक्षर का
दहलीजों से नाता घर का
संझवाती के दीपक का ज्यों नाता होता शाम से
पीड़ा ने ऐसा ही नाता जोड़ा मेरे नाम से
--वाह!!!
सांकल का रिश्ता कड़ियों से
प्रहरों का रिश्ता घड़ियों से
marvelous
शब्दों से नाता अक्षर का
दहलीजों से नाता घर का
संझवाती के दीपक का ज्यों नाता होता शाम से
पीड़ा ने ऐसा ही नाता जोड़ा मेरे नाम से
मुझे भी सबसे अच्छी पंक्तियाँ यही लगी ..बहुत दिल के करीब है मेरे यह बाकी भी अच्छी है इसको एक बार पढ़ कर गुनगुना कर देखा अच्छा लगा ..:)
राकेश जी
एक के बाद एक, एक से बढ़ कर एक...रचनाएँ आप देते जाते हैं...प्रशंशा के लिए इतने शब्द कहाँ से लाऊं...अब इस रचना को पढ़ कर मन में जो भाव उठ रहे हैं उनके लिए शब्द नहीं मिल रहे..क्या करूँ कैसे कहूँ...पशोपेश में हूँ...आँखे मूँद माँ सरस्वती से प्रार्थना कर रहा हूँ की वे हमेशा आप की कलम पर यूँ ही बिराजी रहें.
नीरज
मै नेपाल का रहने वाला हु । इस सुन्दर गीत को नेपाली मे अनुवादित करने का प्रयास कर रहा हु :
गीत को छन्द संग
फुल को गन्ध संग
जुन नाता आंखाको हुन्छ, सपना को गाउँ संग
दुखले जोडेको छ यस्तै नाता मेरो नाम संग ।
बिहानी काडाहरु झैँ मेरो मनको खुंटी झुंडींछ
राती अमरबेल झैँ मलाई आफ्नो भुजापास मे घेर्छे
दिउसोले रबर को तनाव झैँ मलाई रोषले तनकाउंछ
सांझले कुहीरो को पर्दाले मेरो मुख छोप्छ ।
नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद की और से शुभकामनाऎँ ।
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