हर अधूरे प्रश्न का उत्तर

क्या कहां कब कौन किसने किसलिये क्यों
प्रश्न खुद उठते रहे हैं, बिन किसी के भी उठाये
आस दीपक बालते इक रोज तो आखिर थकेगी
ज़िन्दगी जब हर अधूरे प्रश्न का उत्तर बनेगी

खिल रहे हैं फूल से, रिश्ते, अगर वे झड़ गये तो ?
साये अपने और ज्यादा आज हम से बढ़ गये तो ?
और सोता रह गया यदि सांझ का दीपक अचानक
स्वप्न आंखों में उतरने से प्रथम ही मर गये तो ?

प्यास जो है प्रश्न की वह फिर अधूरी न रहेगी ?
ज़िन्दगी ही तब अधूरे प्रश्न का उत्तर बनेगी

चांदनी यदि चांद से आई नहीं नीचे उतर कर
बांसुरी के छिद्र में यदि रह गई सरगम सिमट कर
कोयलों ने काक से यदि कर लिया अनुबन्ध कोई
यामिनी का तम हँसा यदि भोर को साबुत निगल कर

कामना फिर और ज्यादा बाट न जोहा करेगी
ज़िन्दगी ही जब अधूरे प्रश्न का उत्तर बनेगी

शाख से आगे न आयें पत्तियों तक गर हवायें
या कली के द्वार पर भंवरे न आकर गुनगुनायें
बून्द बरखा की न छलके एक बादल के कलश से
और अपनी राह को जब भूल जायें सब दिशायें

उस घड़ी जब चेतना आ नींद से बाहर जगेगी
ज़िन्दगी तब हर अधूरे प्रश्न का उत्तर बनेगी

सूर्य प्राची में उभरने से प्रथम ही ढल गया यदि
भोर का पाथेय सजने से प्रथम ही जल गया यदि
पूर्व पग के स्पर्श से यदि देहरी पथ को निगल ले
और आईना स्वयं के बिम्ब को ही छल गया यदि

शून्य के अवशेष पर निर्माण की फिर धुन सजेगी
ज़िन्दगी तब ही अधूरे प्रश्न का उत्तर बनेगी

6 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

अनुप्रास से सज कर आपका गीत बहुत से प्रश्नों में डुबाता हुआ बहा ले जाता है..


न्य के अवशेष पर निर्माण की फिर धुन सजेगी
ज़िन्दगी तब ही अधूरे प्रश्न का उत्तर बनेगी

यह आप की कलम ही लिख सकती है..


***राजीव रंजन प्रसाद

राजीव रंजन प्रसाद said...

अनुप्रास से सज कर आपका गीत बहुत से प्रश्नों में डुबाता हुआ बहा ले जाता है..


न्य के अवशेष पर निर्माण की फिर धुन सजेगी
ज़िन्दगी तब ही अधूरे प्रश्न का उत्तर बनेगी

यह आप की कलम ही लिख सकती है..


***राजीव रंजन प्रसाद

रंजू भाटिया said...

क्या कहां कब कौन किसने किसलिये क्यों
प्रश्न खुद उठते रहे हैं, बिन किसी के भी उठाये
आस दीपक बालते इक रोज तो आखिर थकेगी
ज़िन्दगी जब हर अधूरे प्रश्न का उत्तर बनेगी

इसी उम्मीद पर शायद जिंदगी कायम है .. एक आस का दीप दिल में जलाती खुबसूरत रचना है यह ..

Dr.Bhawna Kunwar said...

खिल रहे हैं फूल से, रिश्ते, अगर वे झड़ गये तो ?
साये अपने और ज्यादा आज हम से बढ़ गये तो ?
और सोता रह गया यदि सांझ का दीपक अचानक
स्वप्न आंखों में उतरने से प्रथम ही मर गये तो ?

..................

इतनी खूबसूरत और सोचने पर मज़बूर करने वाली पंक्तियाँ हैं कि कोई जवाब ही बन रहा है...

Udan Tashtari said...

प्यास जो है प्रश्न की वह फिर अधूरी न रहेगी ?
ज़िन्दगी ही तब अधूरे प्रश्न का उत्तर बनेगी


--हार्दिक नमन इस रचना को और रचनाकार को.

Shar said...

Bhaut sunder aur saargarbhit rachna hai yeh. Aur samajhane ki jigyasa hai. samajhaiyega. Naman!!

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...