आप- दो पहलू

रात ने अपना घूँघट हटाया नहीं, बाँग इक छटपटाती हुई रह गई
आँख कलियों ने खोली नहीं जाग कर, गूँज भंवरों की गाती हुई रह गई
आप मुझसे विमुख एक पल को हुए,यों लगा थम गई सॄष्टि की हर गति
पैंजनी तीर यमुना के खनकी नहीं, बाँसुरी सुर बजाती हुई रह गई


-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-

सांस के पॄष्ठ पर धड़कनों ने लिखी , आप ही से जुड़ी वो कहानी हुई
आप की चूनरी के सिरे से बँधी, रात की चूनरी और धानी हुई
आप पारस हैं ये तो विदित था मुझे, आज विश्वास मेरा हुआ और दॄढ़
आपकी देह की गंध को चूम कर, नीम की पत्तियाँ रातरानी हुई

6 comments:

Dr.Bhawna Kunwar said...

राकेश जी बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना ये पंक्तियाँ कुछ खास हैं बहुत सुन्दर बधाई स्वीकारें...

आप मुझसे विमुख एक पल को हुए,यों लगा थम गई सॄष्टि की हर गति..

नीरज गोस्वामी said...

आपकी देह की गंध को चूम कर, नीम की पत्तियाँ रातरानी हुई
भाई राकेश जी क्या बात है....क्या शब्द चुने हैं आपने...वाह वाह वाह...कितनी बार भी लिखूं कम ही पड़ेगा...सच मन अन्दर तक तृप्त हो गया.
नीरज

सुनीता शानू said...

बहुत खूबसूरत! शब्द ही नही है वर्णन करने को कि क्या लिखा जाये...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

राकेश जी व परिवार के सभी को २००८ के नव -वर्ष की शुभ कामनाएं -
आपकी कलम से ऐसे ही मोती निख्ररते रहें ...

सादर, स -स्नेह,

लावण्या

अमिताभ मीत said...

आह ! राकेश भाई. ये क्या ज़ुल्म कर रहे हैं आप ? हद है. तृप्त हो गया हूँ पढ़कर.

Anonymous said...

कभी नीम-नीम, कभी शहद-शहद ...
ये गाना सुना है आपने ?

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...