कल वे सब धूमिल हो लेंगें

आज नयन के पाटल पर जो चित्र बने जाने अनजाने
कल तक इतिहासों के पन्नों में वे सब धूमिल हो लेंगे

आज सुवासित करती है जो कली फूल बन कर उपवन को
उसकी नियति पांखुरी बन कर निश्चित है कल को झर जाना
पथ की सिकता जितने पग के चिन्ह लगाये है सीने से
कल तक एक हवा के झोंके से छूकर उनको मिट जाना

और आज पग जिन राहों को मंज़िल का पथ बना रहे हैं
कल को ये पथ इन कदमों की संभव है मंज़िल हो लेंगे

आंख-मिचौली, गिल्ली डंडा, रंगीं कंचे, टूटी चूड़ी
वह गलियों का मानचित्र की रेखाओं में घुलते जाना
चढ़ते हुए उमर की छत पर फ़ांद वयस-संधि मुंड़ेर को
नई शपथ का नये साथ का सहसा इक पौधा उग आना

दॄष्टि कलम तब लिख देती है जिन पन्नों पर प्रेम कथायें
संभव है वे पन्ने फट कर कल इक टूटा दिल हो लेंगे

चौबारे की तुलसी के चौरे पर दीप जला संध्या का
कितनी दूर प्रकाशित पथ को यायावर के कर पाता है
कंदीलों को गगन दीप की केवल संज्ञा दे लेने से
अंधियारी पावस रजनी का तिमिर दूर कब हो पाता है

आज खुशी के रंगों में रँग जो पल हम सब बाँट रहे हैं
रखे याद की मंजूषा में कल ये पल बोझिल हो लेंगें

8 comments:

Udan Tashtari said...

दॄष्टि कलम तब लिख देती है जिन पन्नों पर प्रेम कथायें
संभव है वे पन्ने फट कर कल इक टूटा दिल हो लेंगे


--क्या बात है, राकेश भाई. बहुत सुन्दर.

Anonymous said...

बहुत सुंदर!

Sajeev said...

आंख-मिचौली, गिल्ली डंडा, रंगीं कंचे, टूटी चूड़ी
वह गलियों का मानचित्र की रेखाओं में घुलते जाना
चढ़ते हुए उमर की छत पर फ़ांद वयस-संधि मुंड़ेर को
नई शपथ का नये साथ का सहसा इक पौधा उग आना
waah kaviraaj, lekhani ko shat shat naman

काकेश said...

बेहद सुन्दर भाव.

मीनाक्षी said...

आज नयन के पाटल पर जो चित्र बने जाने अनजाने
कल तक इतिहासों के पन्नों में वे सब धूमिल हो लेंगे
------- बहुत सुन्दर ..सशक्त भाषा शैली में सशक्त ही भाव हैं..पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...

पंकज सुबीर said...

आपने एक अद्भुत कविता रची है मेरी ओर से बधाई आप भारत आ रहे हैं आशा है कहीं किसी मोड़ पर हमारी मुलाकात होगी ।

Unknown said...

I really liked ur post, thanx for sharing. Keep writing. I discovered a good site for bloggers check out this www.blogadda.com, you can submit your blog there, you can get more auidence.

सुनीता शानू said...

दॄष्टि कलम तब लिख देती है जिन पन्नों पर प्रेम कथायें
संभव है वे पन्ने फट कर कल इक टूटा दिल हो लेंगे
बहुत खूब कितनी सच्चाई है हर पंक्ति में...

सुनीता(शानू)

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