जिन गीतों की जनक रही हैं चन्दन-बदनी अभिलाषायें
आप कहें तो अपने उन गीतों को मैं फिर नूतन स्वर दूँ
अगरु-धूम्र के साथ गगन में मुक्त छंद में नित्य विचरते
मानसरोवर में हंसों की पांखों से मोती से झरते
पनिहारी की पायक की खनकों में घुल कर जल तरंग से
कलियों के गातों को पिघली ओस बने नित चित्रित करते
सिन्दूरी गंधों से महके हुए शब्द की अरुणाई को
आप कहें तो फिर से उनके छंद शिल्प में लाकर भर दूँ
संदर्भों के कोष वही हैं और वही प्रश्नों के हल भी
अभिलाषायें जो थीं कल, हैं आज भी वही, होंगी कल भी
वही पैंजनी की रुनझुन के स्वर को सुनने की अकुलाहट
और वही संध्या के रंग में घुलता नयनों का काजल भी
हाँ ! कुछ बदला है शब्दों में, वह परिपक्व रूप का वर्णन
उसका चित्र कहें तो लाकर आज आपके सन्मुख धर दूँ
अँधियारी सुधियों को दीपित करते रहे बने उजियारे
पग को रहे चूमते होकर रंग अलक्तक के रतनारे
साधें सतरंगी करते से रख रख कर शीशे बिल्लौरी
राग प्रभाती और भैरवी ये बन जाते सांझ सकारे
किन्तु अभी तक जो एकाकी भटके मन के गलियारों में
आप कहें तो पल पुष्पित कर ,मैं उनका पथ सुरभित कर दूँ
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6 comments:
जिन गीतों की जनक रही हैं चन्दन-बदनी अभिलाषायें
आप कहें तो अपने उन गीतों को मैं फिर नूतन स्वर दूँ
-अवश्य दें, हमेशा स्वागत है, इन्तजार है और हरदम ही यह आस है.
राकेश भाई,
हमेशा की तरह नूतन…
अब हमारे मन को भी चित्रित करें अपने नवीन स्वर से, गीतों की गंगा बहाएँ सौंदर्य शिखर के अक्ष से…।
अद्भुत!!!
किन्तु अभी तक जो एकाकी भटके मन के गलियारों में
आप कहें तो पल पुष्पित कर ,मैं उनका पथ सुरभित कर दूँ
बहुत सुंदर राकेश जी...बधाई
कृपया अपने ब्लॉगर प्रोफाईल में जाकर ईमेल को सक्रिय कर दें तो आप से सीधे संपर्क करने में आसानी हो जायगी. कई बार सीधे संपर्क की जरूरत पडती है -- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दीजगत की उन्नति के लिये यह जरूरी है कि हम
हिन्दीभाषी लेखक एक दूसरे के प्रतियोगी बनने के
बदले एक दूसरे को प्रोत्साहित करने वाले पूरक बनें
good Hindi kavitayen.Keep it up,i found India and US are similar or would be similar after some decades as livng in US you are able to write so well.kyonki jaisa ann vaisa mann and US ki hava paani bhi apse Hindi Kavita karati hai to fir fark kuch bhi nahin.
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