फूल की गंध में चाँदनी घोल कर

कैनवस पर गगन के लिखा भोर ने
नाम प्राची की जो खिड़कियां खोलकर
रश्मियों ने उसे रूप नव दे दिया
बात उषा के कानों में कुछ बोलकर
आप के चित्र में आप ही ढल गया
आज मेरे नयन के क्षितिज पर तना
रंग भरता हूँ मैं भोर से सांझ तक
फूल की गंध में चाँदनी घोल कर

8 comments:

Profe Claudia Rios Schwaner said...

hola...chile

Udan Tashtari said...

तीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.

बसंत आर्य said...

फूल की गंध में चाँदनी घोलते रहिए और हम उसमे नहाते उतराते और डूबते रहेंगे

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

फूल की गन्ध में चान्दनी घुल गयी,
चान्द भी संग संग फूल पर छा गया,

चान्दनी और खुशबू ने मिलकर बुना,
वो नशा मेरे अंग अंग पर छा गया.


------अभी तक झूम रहे हैं, भाई इस नशे में

Divine India said...

एक और बेहतरीन कविता आपके चित्रमंडल से,
सादे आत्म पर रंग नवीनता का बिखेड़ दूँ ऐसे
मेरे साथ कुछ उभरे ऐसा जिसमें स्वयं ही डूब जाऊँ।

महावीर said...

काव्य की प्रौढ़ कला का विकसित रूप आपकी रचनाओं में ही दिखाई देता हैं।
इसीलिए हर रचना पढ़कर टिप्पणी के लिए मस्तिष्क के सीमित शब्द-कोष से उचित शब्द ढूंढने के असफल प्रयास में उंगलियां की-बोर्ड पर थम जाती हैं।
हाँ, एक इच्छा थी, थी नहीं बल्कि 'है' कि 'ओ पिया, ओ पिया, ओ पिया' आपके सुरों में इसी
साइट पर सुनने का अवसर मिले तो आनंद आजाए।

राकेश खंडेलवाल said...

बसन्तजी,अरविन्दजी, दिव्याभ्तथा समीर भाई, आपका आभार कि आपको आप सभी की प्रेरणा से उपजी पंक्तियां पसन्द आईं.

महावीरजी,

आप रचाओं के लिये मेरे आदर्श हैं और आपकी रचानओं की ज्योत्सना से सदैव पुलकित होता हूँ. आपका आदेश मान कर शीघ्र ही वह रचना स्वरबद्ध कर उपलब्ध कराने का प्रयास करूँगा.

Nishikant Tiwari said...

लहर नई है अब सागर में
रोमांच नया हर एक पहर में
पहुँचाएंगे घर घर में
दुनिया के हर गली शहर में
देना है हिन्दी को नई पहचान
जो भी पढ़े यही कहे
भारत देश महान भारत देश महान ।
NishikantWorld

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...