न बजती बाँसुरी कोई न खनके पांव की पायल
न खेतों में लहरता जै किसी का टेसुआ आँचल्
न कलियां हैं उमंगों की, औ खाली आज झोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
हरे नीले गुलाबी कत्थई सब रंग हैं फीके
न मटकी है दही वाली न माखन के कहीं छींके
लपेटे खिन्नियों का आवरण, मिलती निबोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
अलावों पर नहीं भुनते चने के तोतई बूटे
सुनहरे रंग बाली के कहीं खलिहान में छूटे
न ही दरवेश ने कोई कहानी आज बोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
न गेरू से रंगी पौली, न आटे से पुरा आँगन
पता भी चल नहीं पाया कि कब था आ गया फागुन
न देवर की चुहल है , न ही भाभी की ठिठोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
न कीकर है, न उन पर सूत बांधें उंगलियां कोई
न नौराते के पूजन को किसी ने बालियां बोईं
न अक्षत देहरी बिखरे, न चौखट पर ही रोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
न ढोलक न मजीरे हैं न तालें हैं मॄदंगों की
न ही दालान से उठती कही भी थाप चंगों की
न रसिये गा रही दिखती कहीं पर कोई टोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
न कालिंदी की लहरें हैं न कुंजों की सघन छाया
सुनाई दे नहीं पाता किसी ने फाग हो गाया
न शिव बूटी किसी ने आज ठंडाई में घोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है.
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नव वर्ष २०२४
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3 comments:
अद्भुत गीत !
हर पंक्ति याद रखने योग्य !
आप क्या सचमुच इतना याद करते हैं हिन्दुस्तान को, भूले-बीते परिवेश को ?
ये बहुत ही ग़लत बात है ! अब घर की इतनी याद आरही है कि क्या करूँ . सब आपका दोष है ! इतनी राजस्थानी-उत्तर भारतीय कविता लिखने की क्या जरूरत थी :) वह भी मेरी किस्मत के सितारे देखिये कि ३ साल बाद पढ़ी मैंने पर ठेठ होली के पहले पढ़ी.
सवा सत्यानाश :)
अब ज़रा रंग भिजवाईये गायक साहिब !!
अन्यथा ना लें ! ये तो केवल शिष्या का उलहाना है गुरुदेव !! :)
खोटी री खरी, अधूरी री पूरी समझियो :)
सादर . . . :)
ऐसी कविता पोस्ट करें तो साथ में भारत जाने के टिकट भी संलग्न कर दें :) नहीं तो आपको कोई अधिकार नहीं यूं देश को इतनी शिद्दत से याद करवाने का !!
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