उठी अवनिका प्राची पर से नई किरण लेती अँगड़ाई
नवल आस को लिये भोर नव नये राग पर गाती आये
नया दीप है नई ज्योत्सना और नया विश्वास हॄदय में
यह नव वर्ष नये संकल्पों से कर्मठता और बढ़ाये
आशंका, संत्रास भ्रमित पल परिचय के धागों से टूटें
थकन, निराशा औ' असमंजस सब ही पथ में पीछे छूटें
आंजुरि का जल अभिमंत्रित हो पल पल नूतन आस उगाये
और आस्था हर इक सपना दिन दिन शिल्पित करती जाये
जीवन की पुस्तक का यह जो एक पॄष्ठ है समय पलटता
उसका नव संदेश प्राण में अनुष्ठान हो नूतन भरता
प्रगति पंथ की मंज़िल आकर भित्तिचित्र बन सके द्वार पर
नये वर्ष की अगवानी में यही कामना हूँ मैं करता.
राकेश खंडेलवाल
नव वर्ष २००६
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2 comments:
आप हमेशा इतना अच्छा लिखते थे ? सागर का कोई ओर-छोर है कि नहीं?
कभी हम डूबने वालों का तो सोचा होता :)
"और आस्था हर इक सपना दिन दिन शिल्पित करती जाये."
सुन्दर !
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