गीत बन

स्वर उठा कंठ से शब्द से कह रहा
गीत बन गीत बन, भाव है बह तहा

अर्थ दे तू स्वयं को नये आज से
आंसुओं में उगा बीज मुस्कान के
जो मिली है धरोहर तुझे ्वंश की
दे बदल मायने उनकी पहचान के

चल बदल वक्त के साथ रफ़्तार बन
तू अभी तक क्यों इतिहास में रह रहा

जो छुपे अर्थ कर दे प्रकाशित उन्हें
अपने विस्तार को जान तो ले सही
हो ध्वनित, सब प्रतीक्षा में च्याकुल खड़े
क्यों जमाये हुए है तू मुंह में दही

मौन तो अंत ही स्पंदनों का रहा
किसलिये फिर व्रथा वेदना सह रहा
गीत बन गीत बन

2 comments:

Shar said...

Pahli baat toh, dher spellings mistakes. Hamesha se :)??

"क्यों जमाये हुए है तू मुंह में दही" -- Only you could use this phrase in a serious song. very good !!

"गीत बन गीत बन " --This is the only call that your heart is listening to! very apt :)

Padm Singh said...

ऐसी रचना पर एक टिपण्णी ?? धन्य है ब्लॉग जगत ..

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