पॄष्ठ रहे सब के सब कोरे, सुध-बुध बिसरा कलम सो गई
शब्द भाव के बीच निरंतर, बढ़ती रही बीच की दूरी
करते करते यत्न थक गया, पर अंतिम अध्याय न लिखा
जीवन के इस रंगमंच की हर गाथा रह गई अधूरी.
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नव वर्ष २०२४
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1 comment:
kya hua tha?
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