गम से अपनी यारी होगी
फिर कैसी दुश्वारी होगी
सपने घात लगा बैठे हैं
आँख कभी निंदियारी होगी
दिल को ज़ख्म दिये आँखों ने ?
बरछी, तीर कटारी होगी
भोर उगे या सांझ ढले बस
चलने की तैयारी होगी
खुल कर दाद जहां दी तुमने
वो इक गज़ल हमारी होगी
बहुत दिनों से लिखा नहीं कुछ
शायद कुछ लाचारी होगी
कहो गज़ल या कहो गीतिका
रचना एक दुधारी होगी
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
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