तुम ने भी दुहराई कहनी थी कुछ बात नई
"अच्छे दिन की आआस लगाए बीते बरस कई"
दिन तो दिन है कब होता है अच्छा और बुरा
कोई कसौटी नही बताये खोटा और खरा
दोष नजर का होता, होते दिन और रात वही
अपनी एक असहमति का बस करते विज्ञापन
अनुशासन बिन रामराज्य क्या, क्या तुगलक शासन
मक्खन मिलता तभी दही जब मथती रहै रई
भोर रेशमी, सांझ मखमली, दोपहरी स्वर्णिम
फागुन में बासंती चूनर सावन में रिमझिम
जितने सुंदर पहले थे दिन अब भी रहै वही
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