मन अपना उन्मुक्त भावना के पंखो पर उड़ने दो ना
कब तक बांधे हुए रखोगे तुम इसको उलझे बंधन में
कब तक बांधे हुए रखोगे तुम इसको उलझे बंधन में
बांह पसारे खड़ी प्रकृति के चीन्हो तो अद्भुत आमंत्रण
घाटी से बतियाता सरगम के सुर में निर्झर का गुंजन
श्रृंगों से उतरी राहों की कलियों से अल्हड अठखेली
पाटल पाटल पत्र पत्र पर पुरबाई का चंचल नर्तन
घाटी से बतियाता सरगम के सुर में निर्झर का गुंजन
श्रृंगों से उतरी राहों की कलियों से अल्हड अठखेली
पाटल पाटल पत्र पत्र पर पुरबाई का चंचल नर्तन
चलो भुला कर अपना निर्धारित हर एक दिवस का गतिक्रम
झूम झूम कर लहराओ ना उल्लासित हो इस मधुवन में
झूम झूम कर लहराओ ना उल्लासित हो इस मधुवन में
खिली धूप की लहरो पर आरोहण करते रंग धनक के
संध्या की आँखों में अँजते हुए स्वप्न अरुणाये कल के
निशिगंधा से धवल ज्योत्स्ना का मदमाता प्रणय निवेदन
प्राची की देहरी पर आकर उषा ज्योति कलश से छलके
संध्या की आँखों में अँजते हुए स्वप्न अरुणाये कल के
निशिगंधा से धवल ज्योत्स्ना का मदमाता प्रणय निवेदन
प्राची की देहरी पर आकर उषा ज्योति कलश से छलके
टँके क्षितिज की खूंटी पर इस बिछे कैनवस से वितान पर
देखो तो बैसाख जेठ भी कैसे ढल जाते सावन में
देखो तो बैसाख जेठ भी कैसे ढल जाते सावन में
काटो लगे हुए सोचों पर घर, गलियों, नगरी के घेरे
खोलो वातायन मिट जाए मन अम्बर में घुले अंधेरो
जिन अदृश्य रेखाओं ने कर रखा विभाजित स्वस्थ निर्णयन
उन्हें भुला कर आज जगाओ नई सोच के नए उजेरे
खोलो वातायन मिट जाए मन अम्बर में घुले अंधेरो
जिन अदृश्य रेखाओं ने कर रखा विभाजित स्वस्थ निर्णयन
उन्हें भुला कर आज जगाओ नई सोच के नए उजेरे
प्रेम मित्रता, सौहाद्रों की फुलवारी से रहो सुवासित
राहें सब भटकाया करती जो घिर कर रहती अनबन में
राहें सब भटकाया करती जो घिर कर रहती अनबन में
2 comments:
वाह भाईजी 😄
bahut achha likhte hain kripya kuch tips dijiye ki blog kofamous kaise karte hain hamara blog hai bhannaat.com
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