प्रश्न मन की गुफ़ाओं से

उम्र के गांव को सांस का कारवां
चल रहा है बिना एक पल भी रुके
खर्च होता हुआ पास का हर निमिष
धड़कनें ताक से कोहनियों पर झुके
मोड़ पर आ टँगे चित्र में ढूँढ़ती
कोई परछाईं पहचान से हो जुड़ी
हाथ में लेके धुंधली हुई कुंडली
धुल चुके एक कागज़ में हो गुड़मुड़ी
कल्पना के बिखरते हुए तार को
जोड़ती है हवाओं के संगीत में
 
मुट्ठियों में छनी धूप की चिन्दियाँ
रुक न पाती फ़िसलते हुए गिर रहीं
और जो स्वप्न आंखों में रुक न सके
झील में उनकी परछाईयाँ तिर रहीं
शेष  पुरबाईयों की कथायें हुईं
पृष्ठ लटके हुए अलगनी पर रहे
लौट कर दीप आया नहीं कोई भी
उंगलियां जो लहर की पकड़ कर बहे
प्रश्न मन की गुफ़ाओं से जितने उठे
खो गये अजनबी एक तरतीब में

1 comment:

Udan Tashtari said...

अद्भुत!!

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...