लिख देती है अनायास ही कलम शब्द कोई मुस्का कर
वाणी पुलकित्त हो जाती है उसको अपने सुर में गाकर
अक्षर अक्षर से होते हैं निसृत मृदु गंधों के झरने
छूने लगती गगन, उमंगें पंख कल्पना के फ़ैला कर
सुमनशोभिते ! शब्द एक वह इंगित करता नाम तुम्हारा
भाषा,सरगम और सोच सब उस पर ही रहते आधारित.
करती रही गगन पर अंकित, पहली पहली किरन भोर की
आतुर जिसके दरश के लिये रही सदा तृष्णा चकोर सी
रही जोड़ती अभिलाषायें जिसकी, पथ से पांव पथिक के
जिसकी स्मृतियों के पल पाकर होती हैं सुधियाँ विभोर ही
सुरपुर सलिले, एक नाम है तुम्हें विदित होगा यह शायद
जो कर देता उपज रहे हर संशय को पल में विस्थापित
बादल के टुकड़ों से जब जब होने लगती है प्रतिबिम्बित
धूप स्याहियाँ सात रंग की लेकर के अंकित करती है
बून्दों की लड़ियों को अपनी चूनर के फ़ुँदने में बाँधे
हवा सीटियाँ बजा बजा कर जिसका ज़िक्र किया करती है
सरगमवन्दे !प्रथमा पंचम आरोहों में अवरोहों में
एक नाम है हर इक सुर में सहज भाव से हुआ निनादित
भीगा हुअ ओस में चंचल एक हवा का नन्हा झों का
जड़ देता आरक्त कपोलों पर जिसको कर के रस चुम्बन
सिहरन की इक लहर बना कर भरने लगता है सांसों में
और बाँध कर रख देता है जिससे धड़की हर इक धड़कन
अरुणिम अधरे ! चेतन से ले अवचेतन के सारे गतिक्रम
और अचेतन मन की कृतियाँ एक उसी से है अनुशासित
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सुरपुर सलिले, एक नाम है तुम्हें विदित होगा यह शायद
जो कर देता उपज रहे हर संशय को पल में विस्थापित
-Adbhut
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