पंथ में बाधायें बन लें चाहे झंझा के झकोरे
अर्चना का दीप मेरा जल रहा जलता रहेगा
जानता हूँ आसुरी हैं शक्तियां सत्ता संभाले
जानता हूँ तिमिर आतुर है निगलने को उजाले
किन्तु जो संकल्प का मेरे, उगा सूरज गगन में
चीरता है संशयों के हैं घिरे जब वहम काले
उम्र तम की, रात से होती नहीं लम्बी जरा भी
एक यह विश्वास मन में पल रहा पलता रहेगा
मानता पूजाओं में हर बार बिखरे फूल मेरे
मानता हूँ मुंह छुपाते हैं रहे मुझसे सवेरे
किन्तु मेरी आस्था की ज्योति तो जलती रही है
दूर वह करती रही छाते निराशा के अंधेरे
आस की पुरबाई के कोमल परस से आज छाया
यह कुहासा एक पल में छँट रहा, छँटता रहेगा
है विदित देवासनों पर आज जो आसीन सारे
वे कहाँ वरदान देंगे, चल रहे लेकर सहारे
किन्तु जो संतुष्टि मेरी इक विरासत बन गई है
कह रही , संभव, खिलेंगे एक दिन उपवन हमारे
ठोकरें खा लड़खड़ाया पंथ के हर मोड़ पर पग
किन्तु फिर निर्णय लिये संभला, सदा संभला रहेगा.
2 comments:
Adbhut geet! Kitna kitna sunder! Dhanyavad!
Sadar pranam, shardula
आज इतनी लौ खिले,
बस हमें चलना मिले,
प्रकृति का उपहार अनुपम,
हो उजाला या बिछा तम।
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