मातृ दिवस

शब्द कोशों ने पूरा समर्पण किया
और भाषायें सब मौन होकर रहीं
तेरा उपमान बन आ सके सामने
पूर्ण ब्रह्मांड में कोई ऐसा नहीं
सॄष्टि की पूर्ण निधि से बड़ा है कहीं
तेरे आशीष का इक परस शीश पर
चिह्न तेरे चरण के जहां पर पड़े
स्वर्ग है देव-दुर्लभ वहीं पर कहीं


शब्द जितने रहे पास सब चुक गये, वन्दना के लिये कुछ नहीं कह सके
तूने जिनको रचा वे हो करबद्ध बस प्रर्थना में खड़े मौन हो रह गये
तूने पूरा दिया पर अधूरा रहा ज्ञान मेरा,रहीं झोलियां रिक्त ही
कंठ के स्वर मेरे आज फिर से तेरा पायें आशीष शत बार हैं कह गये

जितनी संचित हुईं मेरी अनुभूतियां,भावनायें रहीं या कि अभिव्यक्तियाँ
होंठ पर आके जितनी सजीं हैं सभी तेरा अनुदान बन ज़िन्दगी को मिलीं
सिद्धियाँ रिद्धिया जितनीं पाईं ,चढ़े जितने गिरि्श्रग मैने प्रगति पंथ पर
उनकी राहें सुगम कर रहीं रात दिन कलियां आशीष की क्यारियों में खिली
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कामधेनु की क्षमतायें कर सहसगुनी
कल्पवृक्ष की निधियों को कर कोटि गुणित
जितना होता संभव, उसका अंश नहीं
जो तेरे आँचल में रहता है संचित

युगों युगों तक करते हुए तपस्यायें
जितना ऋषि-मुनियों को प्राप्त हुआ करता
वह इक पल में तेरी ममता का अमृत
बन कर सहज शीश पर आ जाता झरता

तेरे इक इंगित से होता सृष्टि सृजन
तू ही ब्रह्मा विष्णु और शिव से वंदित
कलुषों की संहारक,ज्ञान-ज्योति दायक
तुझको है जीवन का हर इक क्षण अर्पित

जग ने जो कुछ पाया, तू ही है कारण
शब्द कहें कुछ तुझको,संभव हुआ नहीं
तू ही भाषा, भाव और संप्रेषण तू
तेरा कोई गुण गाये हो सका नहीं

तू तराश कच्ची मिट्टी के लौंदे को
एक सुघड़ और सुन्दर मूर्ति बनाती है
संस्कार,संस्कृतियाँ,सारी शिक्षायें
तेरे ही चरणों से बह कर आती हैं

एक बार फिर यही कामना है मेरी
तेरा हस्त छ्त्र बन सिर पर तना रहे
माँ ! जीवन की हर करवट में बसा हुआ
तेरा यह अनुराग साथ में बना रहे

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर स्तुति, ऐसी ही कृपा बनी रहे।

mridula pradhan said...

behad sunder.

Udan Tashtari said...

माँ ! जीवन की हर करवट में बसा हुआ
तेरा यह अनुराग साथ में बना रहे


वो रहे या न रहे...अनुराग तो सदैव रहेगा और उसका अहसास भी...


उम्दा रचना.

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