पता नहीं है इस मौसम पर किसकी ये परछाई है
आज रेशमी हवा यहाँ पर किसे चूम कर आई है
झोंका एक सुरमई लगता और दूसरा सिंदूरी
एक गले से आ लिपटा है एक बढाता है दूरी
एक लड़खडाता दूजे पर नई रंगतें छाई है
छेड़ रहा है कोई गाते नये सुरों में नई ग़ज़ल
कोई मौन रहा है दिखता केवल होता भाव विह्वल
झोंका सरगम एक सँवारे,दूजे ने बिखराई है
बहकी हवा छोड़ती छापें मेंहदी वाले हाथों की
किस्से कोई दुहराती है चन्दा वाली रातों की
एक हवा है मुंहफट दूजी बिना बात शरमाई है
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7 comments:
क्या कहने आपके रेसमी हवा के ?
एक हवा है मुंहफट दूजी बिना बात शरमाई है ।
बहुत बढिया ऱाकेश भाई ।
:)
बहकी हवा छोड़ती छापें मेंहदी वाले हाथों की
किस्से कोई दुहराती है चन्दा वाली रातों की
एक हवा है मुंहफट दूजी बिना बात शरमाई है
सुरमई और सिंदूरी हवा...क्या बात है
http://veenakesur.blogspot.com/
सुप्रभात राकेश भाईसाहब, अहोभाग्य सुबह-सुबह आपकी रचना पढ़ने को मिली। हवा की खूबसूरती का वर्णन आपने कितने सुंदर शब्दों में किया है। सादर बधाई
बहुत सुन्दर गीत ....
बहुत सुन्दर गीत ....
सुरमई और सिंदूरी हवा...बहुत बढिया
बधाई
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