पूजा दीप बना मंदिर में जल जाऊँ आवश्यक है क्या
तुमसे प्यार मुझे है सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?
किससे कहूँ तुम्हारा मेरा साथ- धार का है उद्गम से
तुमसे जुड़ा नाम रहता है ज्यों प्रयाग का जुड़ संगम से
चन्दन के संग हो पानी का, हो प्रसाद का तुलसी दल से
वीणा के तारों की कंपन का रिश्ता होकर सरगम से
एक बात को सुबह शाम मैं दुहराऊँ आवश्यक है क्या ?
तुमसे प्यार मुझे है सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?
कहूँ ह्रदय हो तुम सीने में और तुम्हारी धड़कन हूँ मैं
तुम हो एक पैंजनी झंकॄत और तुम्हारी थिरकन हूँ मैं
तुम अज्ञात अबूझे हो तो मैं रहस्य हूँ कोई गहरा
हो तुम झोंका गंध भरा, तुमसे उपजी जो सिहरन हूँ मै
वर्णित करता तुम्हें गीत में, मैं जाऊँ आवश्यक है क्या ?
तुमसे प्यार मुझे है सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?
चढ़ते हुए दिवस की होती दोपहरी बनने की आशा
करूँ निकटता प्राप्त तुम्हारी पल पल पर बढ़ती अभिलाषा
आवारा हो गई हवाओं के सँग मचली हुई लहर सी
उड़ी उंमंगों का क्षितिजों का पार जानने की जिज्ञासा
लेकिन जो कुछ छुपा हुआ है,जान पाऊँ,आवश्यक है क्या ?
तुमसे प्यार मुझे है सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?
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14 comments:
तुमसे प्यार मुझे है सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?....बिलकुल नहीं ...
भावपूर्ण कविता ...आभार ..!!
बहुत उम्दा भाव लिए गीत..सुन्दर!!
वर्णित करता तुम्हें गीत में, मैं जाऊँ आवश्यक है क्या ?
तुमसे प्यार मुझे है सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?
-कतई नहीं!!
behad khubsurat bhavpurn.
बहुत सुन्दर रचना!!
"सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?" ... सबको तो नहीं ... पर जिन से है उन्हें बतलाना तो आवश्यक है गुरुजी :)
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अतिसुन्दर, नेह पूरित रचना! बहुत बार पढ़ी सुबह से!
पहले ये कुछ पंक्तियाँ, जो आप जब भी समय मिले देख लें, शायद कुछ-कुछ टंकण में रह गया है जल्दी में :
तुमसे जुड़ा नाम रहता है ज्यों प्रयाग का जुड़ संगम से --- (जुड़??)
वीणा ्के तारों की कंपन का रिश्ता होकर सरगम से --- (होकर??)
तुम अज्ञात अबूझे हो तो मैं रहस्य हूँ कोई गहर --- गहरा :)
प्राप्त निकटता पाऊँ तुम्हारी पल पल पर बढ़ती अभिलाषा --- (पाऊँ या करूँ -- क्योंकि प्राप्त और पाऊँ दोनों??)
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अब प्रशंसा:) ... इतने सुन्दर गीत में कुछ भी उद्धृत करना ठीक नहीं, फिर भी, रस्मे दुनिया है तो ये लीजिये :). . .
"किससे कहूँ तुम्हारा मेरा साथ- धार का है उद्गम से
तुमसे जुड़ा नाम रहता है ज्यों प्रयाग का जुड़ संगम से
चन्दनके संग हो पानी का, हो प्रसाद का तुलसी दल से
हो तुम झोंका गंध भरा, तुमसे उपजी जो सिहरन हूँ मैं --- कितना सूक्ष्म !
चढ़ते हुए दिवस की होती दोपहरी बनने की आशा --अनूठा !!
प्राप्त निकटता पाऊँ तुम्हारी पल पल पर बढ़ती अभिलाषा
आवारा हो गई हवाओं के सँग मचली हुई लहर सी
उड़ी उंमंगों का क्षितिजों का पार जानने की जिज्ञासा --- ये अद्भुत !!
लेकिन जो कुछ छुपा हुआ है,जान पाऊँ,आवश्यक है क्या ?
तुमसे प्यार मुझे है सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?"
...सादर :)
किससे कहूँ तुम्हारा मेरा साथ- धार का है उद्गम से
तुमसे जुड़ा नाम रहता है ज्यों प्रयाग का जुड़ संगम से
चन्दनके संग हो पानी का, हो प्रसाद का तुलसी दल से
वीणा ्के तारों की कंपन का रिश्ता होकर सरगम से
एक बात को सुबह शाम मैं दुहराऊँ आवश्यक है क्या ?
तुमसे प्यार मुझे है सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?
प्रेम के इस अवितीय अभिव्यक्ति ने तो बस विमुग्ध ही कर दिया है......
आपकी लेखनी को शत शत नमन....शत शत नमन !!!
आपकी रचनाएँ पढता हूँ...मन्त्र मुग्ध होता हूँ...लौट जाता हूँ...टिप्पणी करने का साहस नहीं जुटा पाता...लिखने की कोशिश करता हूँ तो शब्द साथ नहीं देते...अधूरे लगते हैं...आपका लिखा पढ़ पा रहा हूँ मेरे पर इश्वर का ये उपकार है...
नीरज
तुमसे प्यार मुझे है सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?
मत बतलाईए पर पता न चले आवश्यक है क्या?
बहुत सुन्दर वाह -- वाह
हमेशा की तरह अनूठा,अद्भुत।
पूजा दीप बना मंदिर में जल जाऊँ आवश्यक है क्या
तुमसे प्यार मुझे है सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?
is ke baad aap ne kya likha... is se ubaru to samjhun
पूजा दीप बना मंदिर में जल जाऊँ आवश्यक है क्या
तुमसे प्यार मुझे है सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?
is ke baad aap ne kya likha... is se ubaru to samjhun
पूजा दीप बना मंदिर में जल जाऊँ आवश्यक है क्या
तुमसे प्यार मुझे है सबको बतलाऊँ आवश्यक है क्या ?
is ke baad aap ne kya likha... is se ubaru to samjhun
अच्छा एक बात बताइए, टिप्पणी करना आवश्यक है क्या?
सुंदर रचना, मन को छू लेने वाली।
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किससे कहूँ तुम्हारा मेरा साथ- धार का है उद्गम से
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