परिभाषा उस एक निमिष की खोज रहा हूँ जिस पल तुमने
होठों से न कहते कहते आँखों से मुझको हाँ की थी
वह पल जब शाकुन्तल सपने, सँवरे थे दुष्यन्त नयन में
वह पल देख मेनका को जब विश्वामित्र हुए थे विचलित
वह पल छुआ उर्वशी ने था जब पुरूरवा की नजरों को
वह पल देख लवंगी को जब जगन्नाथ रह गये अचम्भित
परिभाषा मैं ढूँढ़ रहा हूँ रह रह कर उस एक निमिष की
जिस पल नयनों में आ मेरे सँवरी एक छवि बांकी थी
जब राजीवलोचनों में बन चित्र हुई अंकित वैदेही
जब वंशी की धुन ने छेड़ी यमुनातट पर थिरकी पायल
सम्मोहित कर गई शान्तनु को जब उड़ती गंध हवा में
और पुरन्दर के कांधों पर लहराया जब शचि का आँचल
सोच रहा हूँ क्या कह कर मैं आज पुकारूँ उस इक पल को
जब सूरज की रश्मि हटा कर प्राची का घूँघट झांकी थी
वह पल जिसमें कुछ न कहकर तुमने सब कुछ कह डाला था
वह पल जिसने अनजाने ही किया मेरे आगत का सर्जन
शब्दों ने बतलाया संभव नहीं उसे वर्णित कर पाना
जिस पल में सहसा बँध जाते शत सहस्त्र जन्मों के बन्धन
अभिव्यक्ति ने कहा असम्भव व्यक्त करे उस एक निमिष को
जिसमें पूनम बन जाती है जो इक रात अमा की सी थी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
-
प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
-
हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
-
जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...
21 comments:
:)
बहुत बेहतरीन रचना...अगली वाली २२६वीं रहेगी भाई जी..उसके लिए बधाई. :)
सॉरी, उसे २५१ वीं पढ़ा जाये. :)
यूँ तो क्या फरक पड्ता है..आपसे तो हजारों पोस्ट पढ़ना है अभी.
मेरा अगर कोई भी एक गीत आपके इस रचना की एक पंक्ति जैसा भी बन जाये तो, मैं उसे अपने पहले गीत का नाम दे दूँगी। कैसे लिखते हैं आप इतना सुंदर, गीत सम्राट?
गीत श्रृंगार सीखने के लिए, गीत कलश से अच्छी जगह और सम्भव नही है राकेश भाई !
बहुत बधाई और गीत तो हमेशा की तरह बहुत सुंदर हैं ....खूब लिखे आप यही दुआ है
बधाई! 1001 वीं भी शीघ्र होगी।
कविवर प्रणाम !
Bahut umda rachna. aapki koi bhi rachna padhta hun to lagta hai ki aap jaise mahanubhavon ne hi sahitya ko jinda rakha hai. Deepavli ke deepakon ka prakash aapki is sahitya sadhna men hamesha aalok bikherta rahe, yahi kamna hai.
बहुत-बहुत बधाई !
अद्भुत से कम कुछ भी नहीं कहा जा सकता.
और ढाई सौ का आंकडा छूने पर बधाई. दो सौ पचास वैसे भी बड़ी संख्या है, पर आपकी सभी रचनाओं का उच्च स्तर देखते हुए ये बहुत ही बड़ी गिनती दिखती है. ऐसी ही भावपूर्ण और ह्रदयस्पर्शी रचनाएँ आगे भी पढने को मिलती रहेंगी, ऐसा विश्वास है.
दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनायें.
परिभाषा उस एक निमिष की खोज रहा हूँ जिस पल तुमने
होठों से न कहते कहते आँखों से मुझको हाँ की थी...........वह पल जिसमें कुछ न कहकर तुमने सब कुछ कह डाला था
वह पल जिसने अनजाने ही किया मेरे आगत का सर्जन...raakesh ji shabd nahi hain kuch kahney ko...aabhaar aapkaa..adhbhut hain ye panktiyaan..mun ke bahut qareeb
ढाई सौ का आंकडा छूने पर बधाई.
कितनी ख़ूबसूरत रचना है आदरणीय, और बड़े शुभ दिन आई जी, क्या कहना !
सुन्दर! बधाई।
bahut sunder kavita ke saath 250 vi post .ma saraswati ka ashirvaad aisi hi hamesha aapke saath rahe.
यादगार दिन पर सदैव याद रहने वाली एक और रचना..
राकेश जी आपकी रचना दीपावली का एक अनमोल उपहार है जो कि हम सब पाठकों को मिला है । दीपावली के इस पावन पर्व पर ये ही कामना है कि आप इसी प्रकार सिरजते रहे और हम इसी प्रकार पढ़ते रहें।
250th post..... aur 250 me 250 best dena aap ke hi vash ki baat hai sir...! aashirvaad thoda bahut idhar bhi chhalkaate rahiyega.
जब राजीवलोचनों में बन चित्र हुई अंकित वैदेही
aapko pata hi hoga, nimi aankh chod ke chale gaye the, nirnimesh hi darshan hue the. Us nimsh ko paribhashit na karien mahodaya, aisa milan 345600 varshon mein ek baar hi hota hai!
Kavita sunder thi ath bees comment ko 21 karne ke liye likh diya yoon hi, jayada arth na dhoondhein shrimaan iska :)
Aage 10,000 tak ki yatra sukhad ho!
Post a Comment