गीत श्रॄंगार ही आज लिखने लगा

वेणियों में गुँथा मुस्कुराता हुआ, मोतिया गीत गाने लगा प्यार के
आँज कर आँख में गुनगुनाते सपन, गंध में नहा रही एक कचनार के

चूड़ियों ने खनक, चुम्बनों से लिखी, पत्र पर कंगनों के कहानी कोई
मुद्रिका उंगलियों में सरसने लगी, प्रीत की फिर बनेगी निशानी कोई
हाथ पर एक हथफूल ने फिर हिना ले, लिखी प्यार की इक गुलाबी शपथ
और भुजबंध पर सरसराती हुई आई चूनर उमंगों में धानी कोई

अल्पनायें अलक्तक बनाने लगा, रंग उभरे नये एक त्यौहार के
वेणियों में गुंथा मुस्कुराता हुआ, मोतिया गीत गाने लगा प्यार के

नथ का मोती, हवा संदली से कहे, गंध किसके बदन की लिये हो कहो
बोरला एक टिकुली से रह रह कहे, कुछ तो बोलो प्रिये, आज चुप न रहो
एड़ियाँ अपनी, झूमर उठाते हुए, लटकनों को कहें मौसमों की कसम
आज इस ब्यार की उंगलियाँ थाम कर, प्यार की वादियों में चलो अब बहो

लौंग ने याद सबको दिलाये पुन:शब्द दो नेह के और मनुहार के
आँज कर आँख में गुनगुनाते सपन, गंध में नहा रही एक कचनार के

तोड़िया झनझना पैंजनी से कहे, आओ गायें नये गीत मधुमास के
पायलों के अधर पर संवरने लगे बोल इक नॄत्य के अनकहे रास के
और बिछवा जगा रुनझुनें पांव पर की अलसती महावर जगाने लगा
झालरें तगड़ियों की सुनाने लगीं बोल गलहार को आज विश्वास के

यों मचलने लगा रस ये श्रॄंगार का, गीत लिखने लगा और श्रॄंगार के
लेखनी ओढ़ मदहोशियां कह रही, दिन रहें मुस्कुराते सदा प्यार के

7 comments:

Udan Tashtari said...

हमेशा की तरह एक मोहक रचना. बधाई.

Mohinder56 said...

राकेश जी

आपने तो श्रंगार रस का अपने शब्दो‍ मे‍ ऐसा श्रंगार किया की बस मजा आ गया.. प्रत्येक शब्द, प्र्त्येक छ्‍ंद मे‍ आप ने प्राण फ़ूंक दिये है‍..

Anonymous said...

श्रृंगार के सुंदर भाव!

सुनीता शानू said...

राकेश जी रचना बहुत सुन्दर है,इसे यदि गाया जाये तो बहुत ही सुन्दर लगेगा.

सुनीता(शानू)

योगेश समदर्शी said...

गुनगुनाने के लायक एक काबिले तारीफ रचना

राकेश खंडेलवाल said...

समीर भाई, मोहिन्दरजी, अतुलजी तथा योगेश जी:-
आपका स्नेह ही और नये प्रयोगों के लिये प्रेरणा देता है.

सुनिताजी:

आप गाना चाहें तो गाइये और हमें भी सुनवाइये :-)

Dr.Bhawna Kunwar said...

श्रृगांर वर्णन का बहुत अनूठा प्रयोग पाकर आपकी यह रचना बहुत निखरकर आई है। बहुत-बहुत बधाई।

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