उंगलियां तार झंकारते थक गईं
मन की वीणा पे सरगम न संवरे मगर
जब से संभले कदम हैं निरन्तर चले
तय न हो पाया लेकिन तनिक भी सफ़र
खेत खलिहान पगडंडियां वावड़ी
झूले गाते हुए नीम की डाल के
बातें पनघट से करती हुईं गागरें
और किस्से ढली सांझ चौपाल के
लपलपाती लपट के लरजते हुए
साये में चित्र सपनों के बनते हुए
पीपलों पर टँगी आस को थाम कर
कुछ सितारे धरा पर उतरते हुए
जानता हूँ कि बीती हुई बात है
किन्तु रह रह यही देखती है नजर
सायकि्लों की खनकती हुई घंटियाँ
टेर गलियों में ग्वाले की लगती हुई
मोड़ पर नानबाई की दूकान से
सोंधी खुशबू हवाओं में तिरती हुई
ठनठनाते हुए बर्तनों की ठनक
और ठठेरे का रह रह उन्हें पीटना
पहली बारिश के आते उमंगें पकड़
छत पे मैदान में मेह में भीगना
चित्र मिटते नहीं हैं हॄदय पर बने
वक्त की साजिशें हो गईं बेअसर
आरज़ू हाथ आयें पतंगें कटी
कंचे रंगीन हों पास डब्बा भरे
गिल्ली डंडे में कोई भी सानी न हो
गेंदबाज़ी में हर कोई पानी भरे
चाहतें उंगलियों पे गिनी थी हुईं
और संतोष था एक मुट्ठी भरा
मित्र सब ही कसौटी पे थे एक से
न खोटा था कोई न कोई खरा
ढूँढ़ता हूँ मैं गठरी पुरानी, मिले
रख दिया हो किसी ने उसे ताक पर.
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4 comments:
Kya aap apne email ID de sakte hain?
shukriya!
aapke message yahee.n mil sakate hai.n aapakaa add milane par uttar avashya doongaa
Rakesh Ji,
Aap bahut bahut sundar likhate hain. Hamaree tarf se bahut bahut shubh kamnaayen.
Rama Dwivedi
"सायकि्लों की खनकती हुई घंटियाँ
टेर गलियों में ग्वाले की लगती हुई
मोड़ पर नानबाई की दूकान से
सोंधी खुशबू हवाओं में तिरती हुई
ठनठनाते हुए बर्तनों की ठनक
और ठठेरे का रह रह उन्हें पीटना
पहली बारिश के आते उमंगें पकड़
छत पे मैदान में मेह में भीगना
चित्र मिटते नहीं हैं हॄदय पर बने
वक्त की साजिशें हो गईं बेअसर
आरज़ू हाथ आयें पतंगें कटी
कंचे रंगीन हों पास डब्बा भरे
गिल्ली डंडे में कोई भी सानी न हो
गेंदबाज़ी में हर कोई पानी भरे
चाहतें उंगलियों पे गिनी थी हुईं
और संतोष था एक मुट्ठी भरा
मित्र सब ही कसौटी पे थे एक से
न खोटा था कोई न कोई खरा
ढूँढ़ता हूँ मैं गठरी पुरानी, मिले
रख दिया हो किसी ने उसे ताक पर."
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इन में से एक भी पंक्ति हटा नहीं पाई ! अद्भुत लेखन है ! मन को इतना अच्चा लगा कि अब कुछ और् नहिन् पढा जायेगा आज ! अब शायद मन को आराम चाहिये, इस कविता को अपने साथ ले के सो रही हूँ।
समय हुआ तो कल फिर आपकी पुरानी कवितायें पढूँगी ।
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