एक दीपक वही जो कि जलते हुए
मेरे गीतों में करता रहा रोशनी
एक चन्दा वही, रात के खेत में
बीज बो कर उगाता रहा चाँदनी
एक पुरबा वही, मुस्कुराते हुए
जो कि फूलों का श्रन्गार करती रही
एक बुलबुल वही डाल पर बैठ जो
सरगमों में नये राग भरती रही
भोर भी है वही, औ वही साँझ है
सिर्फ़, लगता है मैं ही बदलने लगा
जो संदेसा सुबह ने था आके दिया
आवरण था नया, बात थी पर वही
हैं वही चंद उलझे हुए फ़लसफ़े
है कहानी वही जो रही अनकही
है वही धूप गुडमुड सी लटकी हुई
अलगनी के अकेले उसी छोर पर
है वही एक खामोश पल वक्त का
मुँह छुपाता, गली के खडा मोड पर
मंज़िलें भी वही, राह भी है वही
सिर्फ़ निश्चय सफ़र का बदलने लगा
है धुआँसा धुआँसा वही आँगना
वो ही कुहरे में लिपटा हुआ गाँव है
वो ही साकी, वही मयकदा है, वही
लडखडाते, सँभलते हुए पाँव हैं
वो ही दहलीज आतुर बिछाये नयन
आस पग चुम्बनों की सजाये हुए
और यायावरी एक जोगी वही
धूनी पीपल के नीचे रमाये हुए
रंग भी हैं वही, कैनवस भी वही
तूलिका का ही तेवर बदलने लगा
राकेश खंडेलवाल
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5 comments:
वाह ! वाह ! पहली बार आपको पढ़ा है , अति सुंदर
'मंज़िलें भी वही…'
बहुत शानदार।
"एक चन्दा वही, रात के खेत में
बीज बो कर उगाता रहा चाँदनी"
--वाह ! वाह !
"है वही धूप गुडमुड सी लटकी हुई
अलगनी के अकेले उसी छोर पर
है वही एक खामोश पल वक्त का
मुँह छुपाता, गली के खडा मोड पर"
--और हम सोच रहे थे कि 'गुडमुड' शब्द शायद पहले हमने ही इस्तेमाल किया है :) हा हा !! (उत्पल दत्त वाली हंसी )!
"मंज़िलें भी वही, राह भी है वही
सिर्फ़ निश्चय सफ़र का बदलने लगा"
--वाह !बिल्कुल ठीक !
"है धुआँसा धुआँसा वही आँगना
वो ही कुहरे में लिपटा हुआ गाँव है"
--वाह ! वाह !
"वो ही दहलीज आतुर बिछाये नयन
आस पग चुम्बनों की सजाये हुए
और यायावरी एक जोगी वही
धूनी पीपल के नीचे रमाये हुए"
--वाह ! वाह !
रंग भी हैं वही, कैनवस भी वही
तूलिका का ही तेवर बदलने लगा
--वाह !बिल्कुल ठीक !
परमानंद !!
सुन्दर रचना.बहुत सुन्दर .. और बखूबी लिखा है.. सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें .. और शुभकामनाएं
Naman!
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