सूरज की पहली अँगड़ाई ने द्वारे पर आन पुकारा
सबसे पहले मेरे होठों पर तब आया नाम तुम्हारा
उगी भोर की प्रथम रश्मि ने खिड़की की झिरियों से आकर
दीवारों पर चित्र तुम्हारे रँगे सात रंगों में जाकर
फूलों की पांखुर से फिसले हुए ओस कण से प्रतिबिम्बित
स्वर्ण मयी आभा से उनका रूप सँवारा सजा सजा कर
सप्त अश्व रथ गति से उभरी हुई हवा ने उन्हें दुलारा
शाश्वत एक मेरे जीवन का, विश्वमोहिनी नाम तुम्हारा
सद्यस्ना:त नदी की लहरें, लगा हुआ माथे पर चन्दन
सुरभि, वाटिका की देहरी से रह रह करती है अभिनन्दन
पूजा की थाली में कर्पूरी लौ, दीपशिखा से मिलकर
करती है मंगल आरतियों से पल पल पर जिसका वन्दन
तॄषित चातकी मन, अम्बर की वीथि वीथि में जिसे पुकारा
मलय गंध से लिखा चाँदनी ने जो, बस वह नाम तुम्हारा
उड़ी नीड़ से परवाजों ने लिखा हवाओं के आँचल पर
यायावर के पाथेयों की सहभागी बनती छागल पर
पिरो स्वरों में अगवानी के बना मंदिरों की आरतियां
दिखा मुस्कुराता हर क्षण में नभ में विचर रहे बादल पर
और क्षितिज की देहरी पर से प्राची ने जिसको उच्चारा
मधुपूरित रससिक्त एक वह प्राणप्रिये है नाम तुम्हारा
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
-
हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
-
शिल्पकारों का सपना संजीवित हुआ एक ही मूर्त्ति में ज्यों संवरने लगा चित्रकारों का हर रंग छू कूचियां, एक ही चित्र में ज्यों निखरने लगा फागुनी ...
-
प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
9 comments:
हर छंद अति सुंदर है, बहुत अच्छा लगा पूरा गीत:
उड़ी नीड़ से परवाजों ने लिखा हवाओं के आँचल पर
यायावर के पाथेयों की सहभागी बनती छागल पर
पिरो स्वरों में अगवानी के बना मंदिरों की आरतियां
दिखा मुस्कुराता हर क्षण में नभ में विचर रहे बादल पर
--क्या बात है!! बहुत खूब!! बधाई इस सुंदर रचना के लिये.
हम इतना ही कह सकते हैं कि आपकी कविताएँ हमें अच्छी लगतीं हैं।
बहुत ही सुंदर रच्ना है आप्की...
बहुत अच्छा लगा पढ्कर...
शुभ्काम्नायें...
बहुत सुन्दर कविता है आपकी
उड़ी नीड़ से परवाजों ने लिखा हवाओं के आँचल पर
यायावर के पाथेयों की सहभागी बनती छागल पर
पिरो स्वरों में अगवानी के बना मंदिरों की आरतियां
दिखा मुस्कुराता हर क्षण में नभ में विचर रहे बादल पर
और क्षितिज की देहरी पर से प्राची ने जिसको उच्चारा
मधुपूरित रससिक्त एक वह प्राणप्रिये है नाम तुम्हारा
वाह वाह
बाकी आपका अवकाश का समय कैसे बीता
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने ...लिखा हुआ एक चित्र की तरह नज़ारो से निकला
आह!!! क्या कहा है आपने कुछ कहने को बचा नहीं पर कहना तो पड़ेगा वरना कहेंगे बिना कहे चला गया॥
एक-एक शब्द हृदय की शाश्वत बौछारों से पट गया है…मन बाते करने को आतुर हो चुका है…व्यथित संस्कार को चैन मिला…बधाई स्वीकारे!!!
सुंदर और उत्कृष्ट रचना के लिए अनेक धन्यवाद।
rakesh ji kafi samya se safari ke lekh men busy thi jis karan aapki rachnayen nahi dekh payi. bahut acha likha ha hamesha ki trha. badhai.
Post a Comment