तुम्हारा वॄन्दावन

हर क्षण है बोझिल पीड़ा से, हर धड़कन आंसू की सहचर
फिर भी मेरा मन गाता है बस एक तुम्हारा वॄन्दावन

सुबह की पहली अंगड़ाई, ले साथ वेदना को आई
दिन की पादानों ने रह रह मेरे प्राणों को दंश दिये
सन्ध्या की झोली में सिमटे पतझड़ के फूल और कीकर
बस नीलकंठ बन कर मैने अपने जीवन के अंश जिये

उमड़ी है काली सघन घटा, चंदा तारों का नहीं पता
पर तुम्हें मान कर मेघ परी, दिल करता रहता आराधन

सांसों के हर स्पन्दन में सेही के काँटे सँवर गये
विधि रूप शकुनि का ले खेली जीवन की चौसर छल बल से
कर संधि अमावस से, मेरे आँगन में उतरी नहीं धूप
सपने अपने रह सके नहीं , उड़ गये हवा में बादल से

रह गईं अधूरी सब साधें, अभिलाषा के नूपुर बाँधे
बस एक दिलासा दिल को है तुम साथ मेरे हो जीवन धन

सम्बन्ध टूटते रहे और पल पल पर बढ़ी दूरियां भी
अपनापन हुआ अजनबीपन हर रिश्ते की परिभाषा में
है रहा भीड़ से घिरा हुआ, अस्तित्व मेरा अदॄश्य हुआ
पनघट की देहरी पर बैठा हर बार रहा हूँ प्यासा मैं

दम लगी तोड़ने हर सरगम, स्वर सभी हो गये हैं मद्दम
बस सिर्फ़ सुनाई देती है, तेरी ही पायल की छन छन

1 comment:

Anonymous said...

रह गईं अधूरी सब साधें, अभिलाषा के नूपुर बाँधे
बस एक दिलासा दिल को है तुम साथ मेरे हो जीवन धन

bhut sundar likha ha aapko badhi.
Dr. Bhawna

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