tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post9222010717245833410..comments2023-11-03T05:42:12.168-04:00Comments on गीत कलश: तो करते अनुसरण तुम्हाराराकेश खंडेलवालhttp://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-17638368915260416852009-01-17T02:05:00.000-05:002009-01-17T02:05:00.000-05:00आदरणीया शर्दुला जी ने जब आपकी वेबसाईट भेजी तो मै क...आदरणीया शर्दुला जी ने जब आपकी वेबसाईट भेजी तो मै क्षण भर को तो जैसे विस्मित सा हो गया, इतनी सुन्दर रचना, पन्क्तियो के हर शब्द मे सुन्दर समायोजन, अति सुन्दर गूढ भावार्थो के साथ सुन्दर शब्द चयन, मै आपके हिन्दी शब्दकोश से सचमुच अभिभूत हू , वैसे तो मै आदरणीया कवियत्री शर्दुला जी की रचना पढकर ही प्रसन्न हो जाता था परन्तु यदि उन्होने आपके प्रति जो आदर के भाव व्यक्त किये है सचमुच आप उसके काबिल है, <BR/><BR/>अपने खींचे हुए दायरे बन जाते हैं चक्रव्यूह जब<BR/>सुधियों के पनघट पर रहता प्राणों का हर इक पल प्यासा<BR/><BR/>सचमुच बहुत सुन्दर पन्क्ति <BR/>आवश्यक ये कहाँ एक ही भाव बिकें माणिक व पत्थर<BR/>ये तो निर्भर है जौहरी की कितनी रहीं पारखी नजरें<BR/>दोष नहीं होता दर्पण का, वह तो वही दिखाता है बस<BR/>जैसे चित्र देखने वाले के नयनों में आकर सँवरें<BR/><BR/><BR/>आपकी यह पन्क्ति तो सचमुच कविता का जैसे निचोड है <BR/>मन के न्यायिक भावों ने यदि प्रश्न उठाये होते साथी<BR/>स्वयं प्रश्न उत्तर बन जाते , आकर करते वरण तुम्हारा<BR/><BR/>आदरणीया शर्दुला जी के प्रति क्रितग्यता व्यक्त करते हुये इतनी ही कह सकून्गा कि इस सुन्दर रचना के लिये आप बधाई के पात्र है, यद्यपि यह कहना शायद बहुत अच्छा नही होगा क्योकि हर शब्द स्वर्णिम आभा बिखेरते हुये भावो के अनुपम सयोजन है. <BR/><BR/>सादर <BR/>राकेश पाण्डेय <BR/>बिलासपुर (छत्तीसगढ)Rakesh Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08155272030883927653noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-67819154421560421762009-01-11T20:32:00.000-05:002009-01-11T20:32:00.000-05:00naya geet kab?naya geet kab?Sharhttps://www.blogger.com/profile/16686072974110885189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-42904018166370557292009-01-07T23:17:00.000-05:002009-01-07T23:17:00.000-05:00आवश्यक ये कहाँ एक ही भाव बिकें माणिक व पत्थरये तो ...आवश्यक ये कहाँ एक ही भाव बिकें माणिक व पत्थर<BR/>ये तो निर्भर है जौहरी की कितनी रहीं पारखी नजरें<BR/>दोष नहीं होता दर्पण का, वह तो वही दिखाता है बस<BR/>जैसे चित्र देखने वाले के नयनों में आकर सँवरें<BR/><BR/>जो पूनम की अँगनाई में शुभ्र वस्त्र जैसे बिखराई<BR/>मिलती शांति, उसी के जैसा होता अन्त:करण तुम्हारा<BR/><BR/><BR/>-अह्ह!!वाह!!<BR/><BR/>अद्भुत संयोजन..आनन्द आ गया.<BR/><BR/>क्या तारीफ करें..शब्द ही नहीं हैं.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-61720363257069442942009-01-07T23:08:00.000-05:002009-01-07T23:08:00.000-05:00"अपने खींचे हुए दायरे बन जाते हैं चक्रव्यूह जबसुधि..."अपने खींचे हुए दायरे बन जाते हैं चक्रव्यूह जब<BR/>सुधियों के पनघट पर रहता प्राणों का हर इक पल प्यासा<BR/>जितना ज्ञान लुटाते उसके अंशों से मन दीपित करते<BR/>तो युग का इतिहास सुनिश्चित कर लेता अनुकरण तुम्हारा"<BR/>वाह !!वाह !!<BR/>-----------<BR/>"दोष नहीं होता दर्पण का, वह तो वही दिखाता है बस<BR/>जैसे चित्र देखने वाले के नयनों में आकर सँवरें"<BR/>"तस्वीरों के जितना सम्मुख, होता उससे अधिक पार्श्व में"<BR/>"और अर्थ के अर्थों मे भी अनगिन अर्थ छुपे होते हैं"<BR/>"मन के न्यायिक भावों ने यदि प्रश्न उठाये होते साथी<BR/>स्वयं प्रश्न उत्तर बन जाते , आकर करते वरण तुम्हारा"<BR/><BR/>जब भी पढती हूँ, नतमस्तक हो जाती हूँ! शिल्प ही नहीं, आप ज्ञान के भी धनी हैं गुरुदेव ! सादर ।।Shardulahttps://www.blogger.com/profile/14922626343510385773noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-74831390387899635432009-01-07T21:56:00.000-05:002009-01-07T21:56:00.000-05:00मैंने जब इसे लय में गाना चाहा तो पहली पंक्ति में '...मैंने जब इसे लय में गाना चाहा तो पहली पंक्ति में 'स्तुतियों' की जगह 'स्तुति' करने पर ही लय बन सकी . शानदार कविता हमेशा की तरह ! आदाब !विवेक सिंहhttps://www.blogger.com/profile/06891135463037587961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-77747629239584957162009-01-07T21:13:00.000-05:002009-01-07T21:13:00.000-05:00:):)Sharhttps://www.blogger.com/profile/16686072974110885189noreply@blogger.com