tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post8511054820655212073..comments2023-11-03T05:42:12.168-04:00Comments on गीत कलश: उत्तर गुमनाम रहेराकेश खंडेलवालhttp://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-2430978488803099852008-04-24T07:07:00.000-04:002008-04-24T07:07:00.000-04:00प्रश्नों के व्यूहों में उत्तर घिरे हुएजाने कैसे स्...प्रश्नों के व्यूहों में उत्तर घिरे हुए<BR/>जाने कैसे स्वयं प्रश्न बन जाते हैं<BR/>उतनी और उलझती जाती है गुत्थी<BR/>जितना ज्यादा हम इसको सुलझाते हैं<BR/>सर्पीली हों पगडंडी, या हों कुन्तल<BR/>भूलभुलैय्या राह कहाँ बन पाती है<BR/>हो आषाढ़ी या हो चाहे सावन की<BR/>एक अकेली बदली क्या क्या गाती है<BR/>प्रश्नों के व्यूहों में उत्तर घिरे हुए<BR/>जाने कैसे स्वयं प्रश्न बन जाते हैं<BR/>उतनी और उलझती जाती है गुत्थी<BR/>जितना ज्यादा हम इसको सुलझाते हैं<BR/>सर्पीली हों पगडंडी, या हों कुन्तल<BR/>भूलभुलैय्या राह कहाँ बन पाती है<BR/>हो आषाढ़ी या हो चाहे सावन की<BR/>एक अकेली बदली क्या क्या गाती है<BR/><BR/>bahut sunder ...!कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-73529868844082471222008-04-24T01:36:00.000-04:002008-04-24T01:36:00.000-04:00उतनी और उलझती जाती है गुत्थीजितना ज्यादा हम इसको स...उतनी और उलझती जाती है गुत्थी<BR/>जितना ज्यादा हम इसको सुलझाते हैं<BR/>सर्पीली हों पगडंडी, या हों कुन्तल<BR/>भूलभुलैय्या राह कहाँ बन पाती है<BR/><BR/>आपको जितना पढता हूँ, उतना ही सीखने को मिलता है। आभार...<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-85440783767727245142008-04-23T22:56:00.000-04:002008-04-23T22:56:00.000-04:00प्रश्नों के व्यूहों में उत्तर घिरे हुएजाने कैसे स्...प्रश्नों के व्यूहों में उत्तर घिरे हुए<BR/>जाने कैसे स्वयं प्रश्न बन जाते हैं<BR/>उतनी और उलझती जाती है गुत्थी<BR/>जितना ज्यादा हम इसको सुलझाते हैं<BR/>सर्पीली हों पगडंडी, या हों कुन्तल<BR/>भूलभुलैय्या राह कहाँ बन पाती है<BR/>हो आषाढ़ी या हो चाहे सावन की<BR/>एक अकेली बदली क्या क्या गाती है<BR/><BR/>सही और सुंदर ...सुंदर भाव से सजी है यह रचना आपकी राकेश जी ..ज़िंदगी के न जाने कितने सवाल अनसुलझे ही रह जाते हैं ..अच्छी सार्थक आपकी बेहतरीन रचनाओं में एक है यह रचना .शुभ कामना के साथ <BR/><BR/>रंजूरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.com