tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post8310722032579855966..comments2023-11-03T05:42:12.168-04:00Comments on गीत कलश: मानचित्रों ने सूरज को पथ न दियाराकेश खंडेलवालhttp://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-36740291906903331752008-05-21T10:18:00.000-04:002008-05-21T10:18:00.000-04:00अति सुन्दर एवं अद्भुत रचना.अति सुन्दर एवं अद्भुत रचना.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-4642593293302348972008-05-21T01:07:00.000-04:002008-05-21T01:07:00.000-04:00बीज बोते रहे कंठ में स्वर उगेकिन्तु हर बार उगती रह...बीज बोते रहे कंठ में स्वर उगे<BR/>किन्तु हर बार उगती रही प्यास ही<BR/>और अनबूझ सी उलझनों से भरी<BR/>एक कलसी निराशाओं की साथ थी<BR/><BR/>एसी अनमोल पंक्तियों में डूबने के बाद आशावादिता की इन अनमोल पंक्तियों नें हरा कर दिया:<BR/><BR/>राह होकर समर्पित खड़ी राह में<BR/>युद्ध के अंत का पर बजे न बजर।<BR/><BR/>***राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.com