tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post7340480526944186467..comments2023-11-03T05:42:12.168-04:00Comments on गीत कलश: सन्ध्या के बादलराकेश खंडेलवालhttp://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-83329551340533171412011-01-21T22:35:36.776-05:002011-01-21T22:35:36.776-05:00बिखरा हुआ हवा का झोंका सन्नाटा पीता
मरुथल के पनघट ...बिखरा हुआ हवा का झोंका सन्नाटा पीता<br />मरुथल के पनघट सा लेकिन रह जाता रीता<br />फिर अपनी पहचान तलाशे पगडंडी पागल<br />और अधिक गहरा जाता है रजनी का आंचल<br /><br />इन पंक्तियों का कोई जोड़ नही..बेजोड़ होती है आपकी रचनाएँ...प्रणामविनोद कुमार पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/17755015886999311114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-61130564676008606492011-01-17T13:47:02.196-05:002011-01-17T13:47:02.196-05:00संध्या के बादल कितना कुछ लाने का संकेत देते हुये।संध्या के बादल कितना कुछ लाने का संकेत देते हुये।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-74788269985688138842011-01-17T06:48:21.303-05:002011-01-17T06:48:21.303-05:00याद तुम्हारी ले आये जब संध्या के बादल
और अधिक गहरा...याद तुम्हारी ले आये जब संध्या के बादल<br />और अधिक गहराया तब तब रजनी का आंचल<br /><br />BAHUT SUNDARपारुल "पुखराज"https://www.blogger.com/profile/05288809810207602336noreply@blogger.com