tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post6862541855043824629..comments2023-11-03T05:42:12.168-04:00Comments on गीत कलश: बीन के पांखुर पांखुरराकेश खंडेलवालhttp://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-22333068327004241012009-07-30T01:10:26.202-04:002009-07-30T01:10:26.202-04:00आपके इस गीत को सुनने में जो मज़ा है वह पढने में नही...आपके इस गीत को सुनने में जो मज़ा है वह पढने में नहीं है :)<br />पहली बार पढा था तो सच कहूं गीत की लय समझ ही नहीं आ रही थी, अब आपको सुना तो समझ आया !<br />कुछ बहुत सुन्दर बिम्ब हैं गीत में: <br />चाँद किरन बोना, सूर्य से मोती मांगना !<br />सादर शार्दुला, ३० जुलाई ०९<br />P.S: कुमकुमों का जलना समझ नहीं आया गुरुदेव!Shardulahttps://www.blogger.com/profile/14922626343510385773noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-86805287362880509952009-07-21T02:54:11.308-04:002009-07-21T02:54:11.308-04:00हमने गमलों में सदा चांद किरण बोई हैं
ये पंक्ति बह...हमने गमलों में सदा चांद किरण बोई हैं <br />ये पंक्ति बहुत सुंदर बन पड़ी है । आपके गीतों का माधुर्य बरबस ही खींच लेता है ।पंकज सुबीरhttps://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-60169133873007798212009-07-20T12:39:43.235-04:002009-07-20T12:39:43.235-04:00आशा और विश्वास का बंधन-एक अद्भुत कृति!!
आज को भूल...आशा और विश्वास का बंधन-एक अद्भुत कृति!!<br /><br />आज को भूल गये कल क्या लिये आयेगा<br />बस यही जान सकें होते रहे हैं आतुरUdan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-91350093560986414372009-07-20T00:33:45.538-04:002009-07-20T00:33:45.538-04:00पर दुपहरी में मरुस्थल के किसी पनघट सी
रिक्त रह जात...पर दुपहरी में मरुस्थल के किसी पनघट सी<br />रिक्त रह जाती रही बांधी हुई हर आंजुर<br /><br />behad sunder,jadui kalam hai.mehekhttps://www.blogger.com/profile/16379463848117663000noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-90536409655349838672009-07-19T23:51:09.974-04:002009-07-19T23:51:09.974-04:00मानव-मन की आशाओं,अभिलाषाओं और जीवन के निर्मम यथार्...मानव-मन की आशाओं,अभिलाषाओं और जीवन के निर्मम यथार्थ के टकराव से उपजे यथार्थ-बोध का सटीक चित्रण। बधाई।Dr. Amar Jyotihttps://www.blogger.com/profile/08059014257594544439noreply@blogger.com