tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post6547626295563742265..comments2023-11-03T05:42:12.168-04:00Comments on गीत कलश: उसका चढ़ा सांस पर कर्ज़ चुकाऊँराकेश खंडेलवालhttp://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-84943286273348487782008-11-11T00:37:00.000-05:002008-11-11T00:37:00.000-05:00राकेश जी,मानवीय आस्थाओं और भावों का अदभुत चित्रण.....राकेश जी,<BR/>मानवीय आस्थाओं और भावों का अदभुत चित्रण..<BR/>अन्तिम दो पंक्तियां सशक्त सार बन का दीपायमान होती हुईMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-16418079566451644742008-11-08T13:12:00.000-05:002008-11-08T13:12:00.000-05:00कई दिनों से चुपके-चुपके पढ़ कर निकल जाता था कि तारि...कई दिनों से चुपके-चुपके पढ़ कर निकल जाता था कि तारिफ़ भी करूं तो क्या और कितनी.आज रहा नहीं गया....अक्षत पुष्प सभी बिखरे जब सौगंधों के गंगा तीरे/आरति के मंत्रों की ध्वनि से सजी न मंदिर की अंगनाई....<BR/>...और मैं फिर-फिर से मंत्र-मुग्ध इन शब्दों की शिल्पकारी पर.<BR/>बेसब्री से प्रतिक्षा में हूँ किताब की जो पंकज जी ने पोस्ट कर दी है मेरे पते परगौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-15722273645019691672008-11-08T13:04:00.000-05:002008-11-08T13:04:00.000-05:00Han jee ek baat aur main yahan ustaad Pankaj Subee...Han jee ek baat aur main yahan ustaad Pankaj Subeer jee kee Teep men kahee gayee har baat se poora ittefaak rakhta hoon. Sahi kahte hain vo ke aap teenon hee sartaaj ho.बवालhttps://www.blogger.com/profile/11131413539138594941noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-67077996892189713722008-11-08T13:01:00.000-05:002008-11-08T13:01:00.000-05:00Aadarneey, kitnee mohakta se marm ko sanjo rahee h...Aadarneey, <BR/>kitnee mohakta se marm ko sanjo rahee hai aapkee ye rachna. Main kah hee chukaa hoon ke aapkee taareef karne kee himmat hee nahin padtee, gurujee. Abhibhoot hue jee. Kya kahna !बवालhttps://www.blogger.com/profile/11131413539138594941noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-87434538857766115462008-11-08T00:58:00.000-05:002008-11-08T00:58:00.000-05:00मैं भी पंकज सुबीर साहब से सहमत हूँ !मैं भी पंकज सुबीर साहब से सहमत हूँ !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-46463153687141715022008-11-07T12:00:00.000-05:002008-11-07T12:00:00.000-05:00Wah saab wah...khoobsurat geeti rachnabadhaiiiiiWah saab wah...<BR/>khoobsurat geeti rachna<BR/>badhaiiiiiयोगेन्द्र मौदगिलhttps://www.blogger.com/profile/14778289379036332242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-47314218440556589542008-11-07T01:31:00.000-05:002008-11-07T01:31:00.000-05:00पीड़ा शब्दों के आवरण ओढे सजीव नयनाभिराम हो उठी. अत...पीड़ा शब्दों के आवरण ओढे सजीव नयनाभिराम हो उठी. अतिसुन्दर..........अद्भुद पंक्तियाँ हैं.रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-63704217000067107982008-11-06T22:10:00.000-05:002008-11-06T22:10:00.000-05:00'तब मन की सूनी क्यारी में……' अद्भुत! भव्य! और क्या...'तब मन की सूनी क्यारी में……' अद्भुत! भव्य! और क्या कहूं? शब्दों पर मेरा ऐसा अधिकार कहां!Dr. Amar Jyotihttps://www.blogger.com/profile/08059014257594544439noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-48701869805255591572008-11-06T05:35:00.000-05:002008-11-06T05:35:00.000-05:00अक्षत पुष्प सभी बिखरे जब सौगंधों के गंगा तीरेआरति ...अक्षत पुष्प सभी बिखरे जब सौगंधों के गंगा तीरे<BR/>आरति के मंत्रों की ध्वनि से सजी न मन्दिर की अँगनाई<BR/>छोड़ गई जब एक दिये को जलता हुआ राह में बाती<BR/>समो गई प्राची में ही जब बिखरी नहीं तनिक अरुणाई<BR/>राकेश जी मुझे ऐसा लगता है कि आपने कसम खा ली है कि किसी को भी गीत नहीं लिखने देंगें क्योंकि सारे भाव सारे शब्द सारी कल्पनायें तो आप पहले ही उड़ा ले जाते हैं दूसरों के लिये बचता ही क्या है जो वो लिख सके । हर बार की ही तरह एक और शानदार गीत । बधाई <BR/>मुझे लगता है कि अमेरिका आकर आपकी कलम चुरानी पड़ेगी किसी बहाने से । या फिर समीर जी को ही सुपारी दे देता हूं कि किसी बहाने से आपकी कलम चुराते हुए लायें । मैंने किसी और ब्लाग पर टिप्पणी की है कि गीत में राकेश खण्डेलवाल जी ग़ज़ल में नीरज गोस्वामी जी और व्यंग्य में समीर लाल जी ये तीनों ही सरताज की उपाधी प्राप्त कर चुके हैं ( बिनाका गीतमाला में हुआ करता था एक सरताज गीत ) । आशा है नए घर में आनंद आ रहा होगा और विशाल घर में विचारों का प्रवाह और तीव्र हो रहा होगा । आपने एक बात नहीं बताई कि अंधेरी रात का सूरज पर आदरणीय भाभीजी और बिटिया रानी की क्या प्रतिक्रिया रही । इसलिये क्योंकि आदमी के सबसे अच्छे आलोचक उसके घर में ही होते हैं जो उसका सबसे सटीक आकलन करते हैं । <BR/>आपका पत्र प्राप्त हो गया है धन्यवाद <BR/>पंकज सुबीरपंकज सुबीरhttps://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-30418558856915170652008-11-06T01:19:00.000-05:002008-11-06T01:19:00.000-05:00बहुत बढ़िया लगी यह पंक्तियाँ पनघट के द्वारे से लौट...बहुत बढ़िया लगी यह पंक्तियाँ <BR/><BR/>पनघट के द्वारे से लौटी, आशाओं की रीती गागर<BR/>रत्नाकर ने निगले भोली सीपी के सोनहरे सपने<BR/>मेघों के उच्छवासों में घुल गईं सावनों की मल्हारें<BR/>बातों की कल्पना मात्र से लगे होंठ रह रह कर कँपनेरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-33466690923896160022008-11-05T23:58:00.000-05:002008-11-05T23:58:00.000-05:00शब्दों से मिलकर भी अधूरे रहते हैं शब्द<A HREF="http://rachnapoemswords.blogspot.com/2008/03/blog-post.html" REL="nofollow">शब्दों से मिलकर भी अधूरे रहते हैं शब्द </A>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-56529457183814758432008-11-05T23:45:00.000-05:002008-11-05T23:45:00.000-05:00बहुत सुंदर भाव...आखिरी दो पंक्तियाँ भा गई.बहुत सुंदर भाव...<BR/>आखिरी दो पंक्तियाँ भा गई.पुनीत ओमरhttps://www.blogger.com/profile/09917620686180796252noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-23771667656471945552008-11-05T22:37:00.000-05:002008-11-05T22:37:00.000-05:00तब जिस टूटी हुई आस ने बढ़ कर मेरी उंगली थामीसोच रहा...तब जिस टूटी हुई आस ने बढ़ कर मेरी उंगली थामी<BR/>सोच रहा हूँ कैसे उसका चढ़ा सांस पर कर्ज़ चुकाऊँ<BR/>"what to say, i am speechless....."<BR/><BR/>Regardsseema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-6085490078987223062008-11-05T22:17:00.000-05:002008-11-05T22:17:00.000-05:00सरगम का हर स्वर रह जाता है घुट कर जब रुँधे कंठ में...सरगम का हर स्वर रह जाता है घुट कर जब रुँधे कंठ में<BR/>तब कैसे है संभव अपने गीतों को मैं तुम्हें सुनाऊँ..... <BR/><BR/><BR/><BR/>-जबरदस्त!! कोई शब्द उपलब्ध नहीं तारीफों को!!!<BR/><BR/>बस, वाह कह कर गुजर करेंगे!!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-69374750388011317782008-11-05T22:04:00.000-05:002008-11-05T22:04:00.000-05:00अच्छा लगा .अच्छा लगा .विवेक सिंहhttps://www.blogger.com/profile/06891135463037587961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-22855604077507222412008-11-05T21:48:00.000-05:002008-11-05T21:48:00.000-05:00On second thoughts . . .लेकिन बिम्ब ना हों जीवन मे...On second thoughts . . .<BR/><BR/>लेकिन बिम्ब ना हों जीवन में<BR/>ना हों श्रद्धा की प्रतिमायें<BR/>मोर-पंखी हों कैसे तन-मन ?<BR/>कहाँ गर्व भरे सर झुक पायें ?<BR/><BR/>जो अवलम्बन आशा के हैं<BR/>शीश धरें और उन्हें निखारें<BR/>गुरुवर सबसे श्रेष्ठ आप हैं<BR/>जीवन के प्रतिमान संवारें !Sharhttps://www.blogger.com/profile/16686072974110885189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-41185340742593206462008-11-05T21:14:00.000-05:002008-11-05T21:14:00.000-05:00मृगमरिचिका से लौटेपावों ने हमको सिखायापानी भरी इन ...मृगमरिचिका से लौटे<BR/><BR/>पावों ने हमको सिखाया<BR/><BR/>पानी भरी इन थालियों ने<BR/><BR/>चन्द्र का बस बिम्ब पाया !Sharhttps://www.blogger.com/profile/16686072974110885189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-7121771697020131522008-11-05T21:02:00.000-05:002008-11-05T21:02:00.000-05:00सरगम का हर स्वर रह जाता है घुट कर जब रुँधे कंठ में...सरगम का हर स्वर रह जाता है घुट कर जब रुँधे कंठ में<BR/>तब कैसे है संभव अपने गीतों को मैं तुम्हें सुनाऊँ..... <BR/><BR/>तब जिस टूटी हुई आस ने बढ़ कर मेरी उंगली थामी<BR/>सोच रहा हूँ कैसे उसका चढ़ा सांस पर कर्ज़ चुकाऊँ....<BR/><BR/>अक्षत पुष्प सभी बिखरे जब सौगंधों के गंगा तीरे<BR/>आरति के मंत्रों की ध्वनि से सजी न मन्दिर की अँगनाई<BR/>छोड़ गई जब एक दिये को जलता हुआ राह में बाती<BR/>समो गई प्राची में ही जब बिखरी नहीं तनिक अरुणाई<BR/><BR/>उस पल ढहती हुई आस्था के अतिरेकों ने जो सम्बल<BR/>दिया, उसे मैं सोच रहा हूँ किस सिंहासन पर बिठलाऊँ.....<BR/><BR/>ओह ! कविवर !! ये गीत आप को आज ही क्यों पोस्ट करना था ? निःशब्द हूँ ... कुछ कह नहीं सकता ...अमिताभ मीतhttps://www.blogger.com/profile/06968972033134794094noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-18431139545205025212008-11-05T20:39:00.000-05:002008-11-05T20:39:00.000-05:00Guruji !!Guruji !!Sharhttps://www.blogger.com/profile/16686072974110885189noreply@blogger.com