tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post6011691612318000017..comments2023-11-03T05:42:12.168-04:00Comments on गीत कलश: छलछला रह गया है जो, पानी लिखेंराकेश खंडेलवालhttp://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-68155269731064476562009-10-27T08:00:53.020-04:002009-10-27T08:00:53.020-04:00बहुत सुन्दर, हमेशा की तरह.बहुत सुन्दर, हमेशा की तरह.रजनी भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/08154642819162396396noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-42664482317145813782009-10-25T12:36:36.531-04:002009-10-25T12:36:36.531-04:00आपको रोज़ इतने मनोयोग से पढ़ती हूँ. एक ही निष्कर्ष...आपको रोज़ इतने मनोयोग से पढ़ती हूँ. एक ही निष्कर्ष निकलता है हर बार, जैसे सागर का विस्तार है वैसे ही आपके गीत हैं. हर बार नयी गति, नयी लहर, नए सीप-शंख लाते हैं. चकित सी शिशु की भाँति उन्हें बीनती जाती हूँ, पर पार ना पाती हूँ आपके लेखन का.<br />आप काव्य के सिन्धु हैं, हम तट पे खड़े उसकी सिकता से खेलते, भीगते पाठक.Shardulahttps://www.blogger.com/profile/14922626343510385773noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-68319593983733272552009-10-22T11:05:35.689-04:002009-10-22T11:05:35.689-04:00अद्भुत,अनूठा मन को छू जाने वाला गीत।
हार्दिक बधाई।...अद्भुत,अनूठा मन को छू जाने वाला गीत।<br />हार्दिक बधाई।Dr. Amar Jyotihttps://www.blogger.com/profile/08059014257594544439noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-47846981819221579352009-10-22T03:08:02.566-04:002009-10-22T03:08:02.566-04:00पतझड़ी पत्र बन कर दिवस उड़ गये
नींद थी रात से वैर ...पतझड़ी पत्र बन कर दिवस उड़ गये<br />नींद थी रात से वैर ठाने हुए<br />धूप के जितने टुकड़े गिरे गोद में<br />सावनी मेघ के थे वे छाने हुए<br />पंथ ने पी लिये थे दिशा बोध के <br />चिन्ह जो भी लगाये गये राह में<br />पथ खज़ूरों तले ही झुलसते रहे<br />छाँह का पल न आया तनिक बाँह में<br />ये अनोखी और अद्भुत पंक्तियां हैं और इन पंक्तियों को वही लिख सकता है जिसने पीर को जिया होता है । आज के दौर में कोई राकेश खण्डेलवाल सरीखा गीतकार ही इस प्रकार के गीत रच सकता है । हर बार आपका कोई गीत पढ़ता हूं और हर बार ये होता है कि अपना स्वयं का लिख हुआ काव्य बेमानी लगने लगता है । सच कहूं तो ये गीत पिछले कई सारे गीतों से आगे का गीत है । शार्दूला दीदी की बात से सहमत हूं कवि जो सहता है उसी को शब्द देता है कवि अपनी ही धनीभूत पीड़ा को निचोड़ कर काव्य का सृजन करता है ।पंकज सुबीरhttps://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-25400962502431830732009-10-21T04:03:07.938-04:002009-10-21T04:03:07.938-04:00पहले तो पढ़ते ही अमर जी की ग़ज़ल याद आ गयी "राज...पहले तो पढ़ते ही अमर जी की ग़ज़ल याद आ गयी "राजा लिख और रानी लिख, फिर से वही कहानी लिख".<br />---<br />अब आपको पढ़ते ही जा रही हूँ. ये पंक्तियाँ गहरे पैठ गयीं हैं.<br />"नैन के बाँध को तोड़ उमड़ा नहीं<br />छलछला रह गया है जो, पानी लिखें"<br /><br />"जो छलावा बनी, बस लुभाती रही<br />पास आई नहीं, रुत सुहानी लिखें" <br /><br />"आस के बीज बोये हुए, चुग गया <br />बन पखेरू समय, उम्र के मोड़ पर -- वाह! वाह! बहुत effective!<br />कामना बन्धनों में बँधी रह गई<br />बढ़ नहीं पाई सीमाओं को तोड़कर" -- ये तो अच्छा ही हुआ ना !<br /><br />"मान जिसको रखा अपनी परछाईं था<br />दुश्मनी उसने सीखी निभानी लिखें"--- ये क्या ??<br /><br />"पतझड़ी पत्र बन कर दिवस उड़ गये <br />नींद थी रात से वैर ठाने हुए --- इस पे विश्वास नहीं होता :) <br />धूप के जितने टुकड़े गिरे गोद में --- बहुत ही सुन्दर !<br />सावनी मेघ के थे वे छाने हुए --- एकदम नया सा !<br /> <br />पथ खज़ूरों तले ही झुलसते रहे <br />छाँह का पल न आया तनिक बाँह में <br />--- "खज़ूरों तले " -- बहुत खूब इस्तेमाल एक प्रचलित बिम्ब का. याद है कुछ दिन हुए आपने "समय बदले घूरे की काया" का भी कितना सुन्दर इस्तेमाल किया था ?<br /><br />पूरे दिन सुरमई रंग ओढ़े रहा<br />नभ हुआ ही नहीं आसमानी लिखें" -- आपकी आँखों में पानी जो छलछलाता रहा, नभ आसमानी कैसे होता ?<br />सादर . . .<br />****<br />प्रिय मानोशी जी, आपने जो कविता लेखन के विषय में कहा उसके बारे में मैं बस यही कहना चाहूंगी कि क्या आपको याद है कुछ दिन हुए ई-कविता में किसी ने प्रसिद्ध फलस्तीनी कवि महमूद दरवेश जी का ये सूत्रवाक्य उद्धृत किया था कि "एक कविता या एक उपन्यास में तटस्थ होने का स्वांग करना एकमात्र क्षम्य अपराध है" :)Shardulahttps://www.blogger.com/profile/14922626343510385773noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-8234602359551635322009-10-20T21:57:15.191-04:002009-10-20T21:57:15.191-04:00राकेश जी,एक और सुंदर गीत आपका। छंद में भी नयापन है...राकेश जी,एक और सुंदर गीत आपका। छंद में भी नयापन है।<br /><br />और शार्दुला, चिंता न करें। राकेश जी जब लिखते हैं तो बस लिखते हैं, कुछ यूँ सोच कर या दुखी हैं इसलिए नहीं लिखते। और वैसे भी कवि तो होता ही वही है जो निजी भावनाओं को पन्ने पर न उकारे, बल्कि उस वक़्त के मन:स्थिति में जो लिख रहा है, वही बस उसी समय का हो।Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी https://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-84128661871777991632009-10-20T12:05:37.095-04:002009-10-20T12:05:37.095-04:00प्रतीकों और बिंबों से परिपूर्ण अभिव्यक्ति एवं आपकी...प्रतीकों और बिंबों से परिपूर्ण अभिव्यक्ति एवं आपकी अनुपम कल्पनाशीलता को बारम्बार नमन।<br /><br /> डा.रमा द्विवेदीRamahttps://www.blogger.com/profile/10010943809475838010noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-11947596558601942112009-10-19T06:41:09.788-04:002009-10-19T06:41:09.788-04:00आप से सब सीखना अच्छा लगता है गुरुजी, पर ये पर्व के...आप से सब सीखना अच्छा लगता है गुरुजी, पर ये पर्व के शुभ दिनों में ऎसी कवितायें आप जो लिखते हैं ना तो आप पे कितना गुस्सा आता है क्या बताऊँ :( <br />कितनी गलत बात है! कितनी चिंता होती है !<br />कविता पे कोई भी टिप्पणी अब पर्वों के बाद ही करूँगी. <br />सादर प्रणाम ! <br />आशीष दें !Shardulahttps://www.blogger.com/profile/14922626343510385773noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-25367526679223498072009-10-18T23:58:57.724-04:002009-10-18T23:58:57.724-04:00आस के बीज बोये हुए, चुग गया
बन पखेरू समय, उम्र के ...आस के बीज बोये हुए, चुग गया<br />बन पखेरू समय, उम्र के मोड़ पर<br />कामना बन्धनों में बँधी रह गई<br />बढ़ नहीं पाई सीमाओं को तोड़कर<br />भाव मन के सभी थरथरा रह गये<br />शब्द में ढाल कर होठ कह न सके<br />आँधियाँ आ उड़ा ले गईं पास का<br />पल विफ़ल प्राप्ति के सिर्फ़ बह न सके<br />कल्पनाओं का सागर है आपके पास। बधाईनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-71453661682394587122009-10-18T23:58:55.649-04:002009-10-18T23:58:55.649-04:00आस के बीज बोये हुए, चुग गया
बन पखेरू समय, उम्र के ...आस के बीज बोये हुए, चुग गया<br />बन पखेरू समय, उम्र के मोड़ पर<br />कामना बन्धनों में बँधी रह गई<br />बढ़ नहीं पाई सीमाओं को तोड़कर<br />भाव मन के सभी थरथरा रह गये<br />शब्द में ढाल कर होठ कह न सके<br />आँधियाँ आ उड़ा ले गईं पास का<br />पल विफ़ल प्राप्ति के सिर्फ़ बह न सके<br />कल्पनाओं का सागर है आपके पास। बधाईनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-83581082144262331612009-10-18T22:53:19.340-04:002009-10-18T22:53:19.340-04:00समीर लाल जी से सहमत ! शुभकामनाएं !समीर लाल जी से सहमत ! शुभकामनाएं !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-53785733040870045262009-10-18T22:21:36.358-04:002009-10-18T22:21:36.358-04:00नैन के बाँध को तोड़ उमड़ा नहीं
छलछला रह गया है जो, प...नैन के बाँध को तोड़ उमड़ा नहीं<br />छलछला रह गया है जो, पानी लिखें<br /><br /><br />-गज़ब!! अद्भुत सोच...<br /><br />आपकी कल्पनाशीलता की कोई सानी नहीं...<br />और आपकी लेखनी की कोई निशानी नहीं....<br /><br /><br />-समीर लाल 'समीर'Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-91686675793084675312009-10-18T22:05:42.622-04:002009-10-18T22:05:42.622-04:00पूरे दिन सुरमई रंग ओढ़े रहा
नभ हुआ ही नहीं आसमानी ल...पूरे दिन सुरमई रंग ओढ़े रहा<br />नभ हुआ ही नहीं आसमानी लिखें<br />बहुत सुन्दर गीत -- बेहतरीन भाव <br />आसमान को तो आसमानी होना ही होगाM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.com