tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post5793240393329264320..comments2023-11-03T05:42:12.168-04:00Comments on गीत कलश: जीवन के इस संधि पत्रराकेश खंडेलवालhttp://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-50736161532479046892008-05-12T04:44:00.000-04:002008-05-12T04:44:00.000-04:00राकेश जी,अद्धभुत रचनाओं की कडी में एक और रचना.सचमु...राकेश जी,<BR/><BR/>अद्धभुत रचनाओं की कडी में एक और रचना.<BR/><BR/>सचमुच जीवन समझोतों का पुलिन्दा है जिसे ढोना ही पडता है..चाहे इसे आधी जीत समझ लो चाहे आधी हार... और हर समझोते की तह में क्या है..कौन जान सका हैMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-49706933692766582152008-05-12T02:59:00.000-04:002008-05-12T02:59:00.000-04:00जीवन के इस संधि पत्र पर,सांसों ने धड़कन से मिलकरजो ...जीवन के इस संधि पत्र पर,सांसों ने धड़कन से मिलकर<BR/>जो हस्ताक्षर किये हुए थे, वे धुंधले हो गये अचानक<BR/><BR/>आपके गीतों में डूब कर रह जाता हूँ..<BR/><BR/>***राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-45142207114611969932008-05-12T01:38:00.000-04:002008-05-12T01:38:00.000-04:00नयनों की चौकी पर खींची गईं विराम की रेखायें थींसमझ...नयनों की चौकी पर खींची गईं विराम की रेखायें थीं<BR/>समझौता था नहीं अतिक्रमण अश्रु-सैनिकों का अब होगा<BR/>मन की सीमाओं पर यादें कभी नहीं घुसपैठ करेंगीं<BR/>गुप्तचरी से कोई सपना आंखों में दाखिल न होगा<BR/><BR/>किन्तु न जाने किस ने करके उल्लंघन तोड़ी हैं शर्तें<BR/>नये ढंग से लिखा जा रहा इस विराम का आज कथानक<BR/><BR/>बहुत सुंदर और सशक्त कविता,थैंक्स इतनी अच्छी कविता पढने का अवसर देने के लिए.rakhshandahttps://www.blogger.com/profile/08686945812280176317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-69892831082391854902008-05-12T01:22:00.000-04:002008-05-12T01:22:00.000-04:00राकेश जीएक के बाद एक जिस धारा प्रवाह से आप रचनाये ...राकेश जी<BR/>एक के बाद एक जिस धारा प्रवाह से आप रचनाये रचते हैं वो शोध का विषय है. शब्द कोष जो आप के पास है वो ही सब के पास होता है लेकिन आप उस में से न जाने कहाँ से नए शब्द खोज कर उन्हें इस तरह से सजाते हैं की लगता है वो शब्द नितांत आप के हैं किसी कोष के नहीं. हर बार आप की रचना पढ़ कर नतमस्तक हो जाता हूँ. क्या कहूँ "समीर जी" शब्दों में अब कुछ कहने को रहा ही क्या है?<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-24822188723184412672008-05-11T22:45:00.000-04:002008-05-11T22:45:00.000-04:00नयनों की चौकी पर खींची गईं विराम की रेखायें थींसमझ...नयनों की चौकी पर खींची गईं विराम की रेखायें थीं<BR/>समझौता था नहीं अतिक्रमण अश्रु-सैनिकों का अब होगा<BR/>मन की सीमाओं पर यादें कभी नहीं घुसपैठ करेंगीं<BR/>गुप्तचरी से कोई सपना आंखों में दाखिल न होगा<BR/><BR/>बहुत ही बेहतरीन भाव और शब्द हैं इस रचना के ..बेहतरीन रचना लिखी है आपने राकेश जीरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-38084390142615507132008-05-11T22:11:00.000-04:002008-05-11T22:11:00.000-04:00क्या कहूँ-एकदम बेजोड़. आपकी रचनाओं पर कुछ कहना अब श...क्या कहूँ-एकदम बेजोड़. आपकी रचनाओं पर कुछ कहना अब शब्द क्षमता के बाहर होता जा रहा है, कुछ सुझाब आप ही दें वरना इस्माली लगा कर भाग जायेंगे शर्माते हुए. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com