tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post5630152496242038207..comments2023-11-03T05:42:12.168-04:00Comments on गीत कलश: गंध की रागिनीराकेश खंडेलवालhttp://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-2706131653134653022007-07-26T07:26:00.000-04:002007-07-26T07:26:00.000-04:00राकेश जी,आपके गीतों की मधुरता देखते ही बनती है.. आ...राकेश जी,<BR/>आपके गीतों की मधुरता देखते ही बनती है.. आपका की एक कविता आप के स्वर में सुनी थी... पास वाली झोपडी से गांव का व्यवहार क्या हो... उसके बाद आप ने अपने गीत को स्वर क्यों नही दिया.. हमे प्रतीक्षा रहेगी<BR/><BR/>छेड़ता शाख पर पत्तियों को मचल<BR/>एक चुम्बन कली के जड़ा गाल पर<BR/>फिर बजाने लगा जलतरंगें मधुर<BR/>बाग के बीच बैठे हुए ताल पर<BR/>चातकों के हुए स्वप्न साकार सब<BR/>सीपियां मौक्त-श्रॄंगार करने लगीं<BR/>यज्ञ की भूमि पर एक कदली तरू<BR/>से महकती हुई लौ उमड़ने लगी<BR/><BR/>सुन्दर रस विभोर करती पंक्तियांMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-78353519528257846032007-07-25T02:36:00.000-04:002007-07-25T02:36:00.000-04:00एक उम्दा रचना.. इसी तरह हमें भिगोते रहें :)एक उम्दा रचना.. इसी तरह हमें भिगोते रहें :)Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-4137919597441524342007-07-24T18:45:00.000-04:002007-07-24T18:45:00.000-04:00आपके मुख से दीपित हुई जो निशारात पूनम की जैसे लगा ...आपके मुख से दीपित हुई जो निशा<BR/>रात पूनम की जैसे लगा आ गई<BR/>आपकी चूनरी जो हवा में उड़ी<BR/>तो गगन पर सितारों की रुत छा गई<BR/><BR/><BR/>--वाह, हमेशा की पुनः एक बेहतरीन रचना, बधाई!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-69582168172577378162007-07-24T17:22:00.000-04:002007-07-24T17:22:00.000-04:00राकेश जी, बहुत बेहतरीन रचना है।आपके मुख से दीपित ह...राकेश जी, बहुत बेहतरीन रचना है।<BR/><BR/>आपके मुख से दीपित हुई जो निशा<BR/>रात पूनम की जैसे लगा आ गई<BR/>आपकी चूनरी जो हवा में उड़ी<BR/>तो गगन पर सितारों की रुत छा गईपरमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-70479166223518034552007-07-24T16:53:00.000-04:002007-07-24T16:53:00.000-04:00बात दीवार से चौक करने लगाखिड़कियाँ झाँक कर देखती रह...बात दीवार से चौक करने लगा<BR/>खिड़कियाँ झाँक कर देखती रह गईं<BR/>पौलियां देहरी, खनखनाते हुए<BR/>बात गलियों के कानों में कहती रहीम<BR/>बहुत ही सुन्दर उपमाएँ हैं, बहुत अच्छी लगी.रजनी भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/08154642819162396396noreply@blogger.com