tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post1381496130760458928..comments2023-11-03T05:42:12.168-04:00Comments on गीत कलश: तुम्हारे कुन्तलों को छेड़ने की चाहराकेश खंडेलवालhttp://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-15744273352803657202007-06-11T05:37:00.000-04:002007-06-11T05:37:00.000-04:00राकेश जी! बहुत खूब लिखा है! मेरी हार्दिक बधाई स्वी...राकेश जी! बहुत खूब लिखा है! मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें .. कवि कुलवंतKavi Kulwanthttps://www.blogger.com/profile/03020723394840747195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-60352141996751070802007-06-07T16:22:00.000-04:002007-06-07T16:22:00.000-04:00वाह भाईसाहब वाह, बहुत सुंदर गीत।अब लगता है सोनू नि...वाह भाईसाहब वाह, बहुत सुंदर गीत।<BR/>अब लगता है सोनू निगम जी से बात करनी पड़ेगी कि आपके गीतों का एक गुलदस्ता तैयार किया जाए। अद्भुत हैं।अभिनवhttps://www.blogger.com/profile/09575494150015396975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-6687215932799756912007-06-07T08:34:00.000-04:002007-06-07T08:34:00.000-04:00बुलाया चाँदनी को नाम ले लेकर तुम्हारा हीसुरभि से प...बुलाया चाँदनी को नाम ले लेकर तुम्हारा ही<BR/>सुरभि से पूछती हर बार उद्गम है कहाँ बोलो<BR/>मचल कर सरगमों की रागिनी से ज़िद किये जाती<BR/>कहाँ से तान पाई है जरा ये भेद तो खोलो<BR/><BR/>सुरभि की, चाँदनी की, रागिनी की स्रोत तुम ही हो<BR/>तभी बन याचिका इनको उमंगों से निहारा है<BR/><BR/>---अद्भुत गीत-पढ़ते पढ़ते स्वर झंकृत हो उठे और अनायास ही गुनगुनाने को जी चाहता है. वाह!! बहुत खूब. बधाई.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-23091599859987029912007-06-07T02:56:00.000-04:002007-06-07T02:56:00.000-04:00राकेश जी बेहद सुंदर मनमोहक गीत है...तुम्हारे कुन्त...राकेश जी बेहद सुंदर मनमोहक गीत है...<BR/>तुम्हारे कुन्तलों को छेड़ने की चाहतें लेकर<BR/>हवाओं ने घटाओं से पता पूछा तुम्हारा है<BR/>हर पक्तिं अपने आप में पूर्ण मालूम पड़ती है मगर फ़िर भी एक साथ जुड़ी हुई है...<BR/>बुलाया चाँदनी को नाम ले लेकर तुम्हारा ही<BR/>सुरभि से पूछती हर बार उद्गम है कहाँ बोलो<BR/>मचल कर सरगमों की रागिनी से ज़िद किये जाती<BR/>कहाँ से तान पाई है जरा ये भेद तो खोलो...<BR/><BR/>सुरभि की, चाँदनी की, रागिनी की स्रोत तुम ही हो<BR/>तभी बन याचिका इनको उमंगों से निहारा है<BR/><BR/>अद्भुत गीत जो हर कोई गुनगुनाना चाहेगा...<BR/>बहुत-बहुत बधाई...और अगले गीत का बेसब्री से इन्तजार रहेगा...<BR/><BR/>सुनीता(शानू)सुनीता शानूhttps://www.blogger.com/profile/11804088581552763781noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-67953334633216417722007-06-07T00:34:00.000-04:002007-06-07T00:34:00.000-04:00सुन्दर बिम्बों से सज्जित भावपूर्ण रचना है राकेश जी...सुन्दर बिम्बों से सज्जित भावपूर्ण रचना है राकेश जी, हमेशा की तरह.<BR/><BR/>शीर्षक देख कर लगा कि आप छेडछाड करने जा रहे हैं परन्तु माजरा कुछ और ही था.Mohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-24328256080364945422007-06-07T00:19:00.000-04:002007-06-07T00:19:00.000-04:00राकेश जी..एसा गीत जिसे बरबस ही गुनगुनाने को जी करे...राकेश जी..<BR/><BR/>एसा गीत जिसे बरबस ही गुनगुनाने को जी करे।उस पर एसे बिम्ब की मन हरा हो गया:<BR/><BR/>अषाढ़ी एक बदली को गली के मोड़ पर देखा<BR/>गईं फिर दौड़ पकड़ी बाँह उसकी पास में जाकर<BR/><BR/>तुम्हारा चित्र देखा एक दिन पुरबाई के घर में<BR/>तभी से हर गली हर मोड़ पर तुमको पुकारा है<BR/><BR/>मचल कर सरगमों की रागिनी से ज़िद किये जाती<BR/>कहाँ से तान पाई है जरा ये भेद तो खोलो<BR/><BR/>*** राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-6429632540392522212007-06-06T22:59:00.000-04:002007-06-06T22:59:00.000-04:00sir mast hai apki poem. kya baat hai janab. likha ...sir mast hai apki poem. kya baat hai janab. likha kariye.मुनीश ( munish )https://www.blogger.com/profile/07300989830553584918noreply@blogger.com