tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post1225807566329761612..comments2023-11-03T05:42:12.168-04:00Comments on गीत कलश: चन्दन लेप लगाया किसनेराकेश खंडेलवालhttp://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-55632050798749783532007-09-14T07:02:00.000-04:002007-09-14T07:02:00.000-04:00गूँज रहा था इन गलियों में केवल सन्नाटे का ही स्वरअ...गूँज रहा था इन गलियों में केवल सन्नाटे का ही स्वर<BR/>अट्टहास करता फिरता था, पतझड़ का आक्रोश हो निडर<BR/>फ़टी विवाई वाली एड़ी जैसी चटकी तॄषित धरा पर<BR/>पल पल दंश लगाता रहता था अभाव का काला विषधर<BR/><BR/>थे मॄतप्राय ,सभी संज्ञा के चेतन के पल व अवचेतन<BR/>सुधा पिला कर फिर जीने का नव संकल्प सजाया किसने<BR/><BR/>हमेशा की तरह सुंदर!कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-17553549632804469522007-09-14T07:00:00.000-04:002007-09-14T07:00:00.000-04:00This comment has been removed by the author.कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-50370434505601496812007-09-12T08:54:00.000-04:002007-09-12T08:54:00.000-04:00बेजीयही प्रश्न लेकर भटका हूँ मैं भी गलियों चौबारों...बेजी<BR/><BR/>यही प्रश्न लेकर भटका हूँ मैं भी गलियों चौबारों में<BR/>दिन सप्ताह महीने बीते रहा व्यस्त में पखवाड़ों में<BR/>न तो बजी फोन की घंटी, न ही पाया है सन्देसा<BR/>और खबर भी पा न सका में ढूँढ़ थका मैं अखबारों में<BR/><BR/>समीर भाई:<BR/><BR/>बस दो बोल आपके रह रह मुझको प्रेरित कर जाते हैं<BR/>वही लेखनी से झर झर कर गीत स्वत: बनते जाते हैं<BR/>आप प्रेरणा देते रहिये ,लिखती सदा रहेंगी कलमें<BR/>घोलेंगी ये भाव शब्द में, यह अनुबन्ध किये जाते हैंराकेश खंडेलवालhttps://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-32384037687250540032007-09-12T01:38:00.000-04:002007-09-12T01:38:00.000-04:00किसने ??किसने ??Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16964389992273176028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-35525905244588124002007-09-11T20:17:00.000-04:002007-09-11T20:17:00.000-04:00वाह!!सावन की पहली बयार का झोंका है या गंध तुम्हारी...वाह!!<BR/><BR/>सावन की पहली बयार का झोंका है या गंध तुम्हारी<BR/>मेरे तप्त ह्रदय पर आकर चन्दन लेप लगाया किसने<BR/><BR/><BR/>-कितना पावन अहसास-एकदम कोमल! बधाई इस सुन्दर रचना के लिये.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com