सब सितारों की चौसर की हैं गोटियाँ

खोजता है कोई रौशनी धूप में
कोई परछाइयों से गले मिल रहा
कोई जलता है पा मलायजों का परस
कोई पी अग्नि को फूल सा खिल रहा
तीर नदिया के ले प्यास आया कोई
और लेकर गया साथ में प्यास ही
रत्न मणियाँ किसी को मिलीं चाहे बिन
कोई कर न सका आस की आस भी

कोई मर्जी से अपनी न कुछ कर सके
सब सितारों की चौसर की हैं गोटियाँ

शैल के खंड , कोई पड़ा रराह में
शिल्प को चूम कोइ  बने देवता
कोई कोणार्क बन कर कथाएं कहे
कोई नेपथ्य में हो खड़ा देखता
कोई हो भूमिगत बनता आधार है
नभ की उंचाइयां कर रहा है सुगम
कोई अनगिन प्रहारों से छलनी हुआ
हर घड़ी झेलता छैनियों की चुभन

ज्ञात होता नहीं है उसे ये तनिक
वो बने कोई प्रतिमा कि या सीढियां

फूल पूजा की थाली में कोई सजे
कोई माला बने प्रीत अनुबंध की
कोई शूलों के पहरे में बैठा हुआ
तान छेड़ा करे रस भरी गंध की
कोई आहत पलों को सुकोमल कर
कोई चूमे किसी देवता के चरण
शीश चढ़ता कोई वेणियों में सिमट
है किसी की नियति बस धरा का वरण

कल्पना की पतंगें उड़ें व्योम में
खींच लेती धरा पर मगर डोरियाँ

8 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

चलन विचारों का रुक जाता, पैर धरा जब पड़ते हैं,
व्योम भरा लगने लगता जब हम अपनों से लड़ते हैं।

गजेन्द्र सिंह said...

बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों को पिरोया है इन पंक्तिया में आपने .......

पढ़िए और मुस्कुराइए :-
आप ही बताये कैसे पार की जाये नदी ?

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कोई मर्जी से अपनी न कुछ कर सके
सब सितारों की चौसर की हैं गोटियाँ

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..

रंजना said...

आह...अद्भुद..!!!!
सदैव की भांति.....

विनोद कुमार पांडेय said...

फूल पूजा की थाली में कोई सजे
कोई माला बने प्रीत अनुबंध की
कोई शूलों के पहरे में बैठा हुआ
तान छेड़ा करे रस भरी गंध की

ऐसे भाव प्रस्तुत करना आम कवि के बस की बात नही...आपमें कुछ खास तो है...सुंदर भाव और लाजवाब रचना...प्रणाम स्वीकारें..

Harish said...

very nice.
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