वही बीता हुआ कल

आज फिर से याद आया है वही बीता हुआ कल
जब हमारे रास्ते इक मोड़ पर आ मिल गये थे
प्रीत में डूबी हुई इक बांसुरी बजने लगी थी 
और ऊसर में हजारों फूल खुद आ खिल गए थे


आज यह प्रासाद मन का शून्य सा एकांत ओढ़े
ताकता सूने पड़े है फ़्रेम जो वातायनों के
चाहता है खींचना फिर से नज़र की कूँचियों से
चित्र जो थे साथ में हमने सँवारे मधुवनों के
प्यास  से आकुल हुआ मन ढूँढता है  तृप्ति सरगम
राग जिसके साँझ कीअंगनाई में शामिल हुए थे.

फिर संजीवित् हो गया है इक वही बीता हुआ कल
जब पुरानी डायरी के पृष्ठ सहसा फड़फड़ाए
और महकी फूल की सूखी  हुई इक पाँखरी वह
चूम कर जिसको तुम्हारे होंठ  बरबस मुस्कुराये 
 दृष्टि का आकाश फिर से हो रहा है इंद्रधनुषी
उन रंगो से जो तुम्हारी ओढ़नी से ढल गए थे 

एक सूनी दोपहर में इक वही बीता हुआ कल
आ नजर के सामने चलचित्र बन कर दौड़ता है
पालकी ले कर बढ़े जाते कहारों की गति के
चिह्न का आभास पल पल आ हृदय झकझोरता है
​और वे पल फिर हुए जीवंत जब परछाइयों पर 
पड़ तुम्हारे थरथराते नैन इक पल रुक गए थ

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