आओ बैठें बात करें
बहुत हो चुकी कविता गज़लें
काटी राजनीति की फ़सलें
कुछ पल आज चैन से कट लें
छेड़ विगत का अम्बर, यादों की मीठी बरसात करें
चक्करघिन्नी बने घूमते
कोई अनबुझी प्यास चूमते
बीत रहे हैं दिवस टूटते
करें दुपहरी सांझ अलस की, सपनों वाली रात करें
आज फ़ेसबुक पीछे छोड़ें
और ट्विटर से निज मुख मोड़ें
व्हाट्सएप्प का बन्धन तोड़ें
और साथ अपने जीवन को, हम अपनी सौगात करें
आओ बैठें बात करें
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आओ बैठें बात करें
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